जमशेदपुर.
गोलमुरी स्थित भोजपुरी भवन में जन संस्कृति मंच की ओर से मनोज भक्त के उपन्यास ‘शालडुंगरी का घायल सपना’ पर परिचर्चा का आयोजन हुआ. परिचर्चा की शुरुआत और संचालन करते हुए जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य व आलोचक सुधीर सुमन ने कहा कि इस उपन्यास को झारखंड के आदिवासी जनजीवन के यथार्थ, जल-जंगल-जमीन के लिए चल रहे आंदोलनों पर लिखे गये उपन्यासों की परंपरा में रखकर देखा जाना चाहिए. उपन्यासकार मनोज भक्त ने उपन्यास के कुछ अंशों का पाठ करते हुए कहा कि संघर्ष के लिए सपनों का बहुत महत्त्व होता है. विकास के जो सरकारी दावे हैं, उनका आदिवासियों के लिए क्या अर्थ है, उसे इस उपन्यास में दिखाया गया है. आदिवासियों, विशेषकर स्त्रियों ने किस तरह लड़ाई को अपनी जिंदगी में ढाल लिया है, इसे इन्होंने दिखाया है.
गीतकार संजय पाठक ने कहा कि मनोज भक्त एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के साथ लेखक भी हैं, यह मणिकांचन संयोग है. लेखक ने बहुत ही सरल शब्दों का प्रयोग किया है और कारपोरेट लूट की राजनीति को बखूबी उजागर किया है. युवा कवि वरुण प्रभात ने कहा कि इस उपन्यास का आवरण और शीर्षक बहुत आकर्षक है. सपने भी कैसे घायल हो सकते हैं, इसे पढ़ते हुए जाना जा सकता है. इजरायल और फिलिस्तीन का उदाहरण देते हुए कहा कि जो अपने हक के लिए लड़ते हैं; उन्हें ही आतंकवादी बताया जा रहा है.
कामरेड रामपलक चौधरी ने कहा कि शालडुंगरी का सपना तमाम दबे-कुचले लोगों का सपना है. झारखंड की मूल समस्या मजदूरी की समस्या है.
परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार डॉ केके लाल ने कहा कि सपना घायल है, पर परास्त नहीं हुआ है. यह एक दिन पूरा हो सकता है. यह उम्मीद जगाने वाली बात है. उपन्यास की नायिका जेमा पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा यह बताता है कि जिसकी जमीन, जिसका जंगल है, उसी को दोषी करार दिया जा रहा है. यही कारपोरेट का राष्ट्रवाद है, जिसके विरुद्ध लोग लड़ रहे हैं.
इस अवसर पर साहित्यकार शैलेंद्र अस्थाना, दीपक जॉन, भरत प्रसाद यादव, ललन प्रसाद शर्मा, अयोध्या प्रसाद सिंह, शिवजी शर्मा, एसके राय, ओमप्रकाश आर्य, रामाधार प्रसाद चौरसिया, एस रविदास, विप्लव कुमार ठाकुर, शिव चरण हालदार, रघुनंदन मिस्त्री, क्रांति प्रकाश, मनोज प्रसाद, अविनाश रंजन, जगमोहन महतो, मुकेश कुमार अन्य भी मौजूद थे.