अजय मुस्कान, जमशेदपुर.
वज़ूद क्या सस्ता दिया गया….!!”
पूछो न कितनी बार ये धोखा दिया गया!!
हमको क़दम-क़दम पे मसीहा दिया गया!!
क़ीमत चुकाई ख़ुद को सरे-राह बेचकर
मुझको मेरा वज़ूद क्या सस्ता दिया गया!!
बाज़ार देखो झूठ का कितना अजीब है
चेहरे को मेरे और ही चेहरा दिया गया!!
तन्हाइयां, उदासियां, हैरत में पड़ गयीं
बीनाई* मेरी छीन के चश्मा दिया गया !!
मंज़िल भी होती पाँव के नीचे मगर, सुनो
बच्चों-सा मुझको, चाँद से बहला दिया गया !!
रिश्तों की क्या दुहाई दूँ दुनिया को मैं “अजय”
मुझको मेरी वफ़ा का सिला क्या दिया गया !!
* बीनाई – आंखों की रोशनी
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