आस्था जायसवाल, जमशेदपुर.
मुस्कुराती हूं
दर्द भरा है जिंदगी में,
फिर भी मुस्कुराती हूं.
लोग पागल कहते हैं,
ख़ुशी ख़ुशी मान
जाती हूं.
लोगों को लगता है
पागल हू मैं,
उनको क्या मालूम
मैं ही उन्हें हंसाती हूं.
लोग पागल कहते हैं,
फिर भी मुस्कुराती हूं,
मेरे अंदर के दर्द को,
मैं ही समझ पाती हूं,
किसी को बताना चाहती,
पर कह नहीं पाती हूं,
लोग क्या सोचेंगे
इस डर से
किसी को बता नहीं पाती हूं,
छोटी छोटी बातों,
में हंसने लगती हूं,
लोग पागल कहते हैं,
फिर भी मुस्कुराती हूं.
इस कविता की रचनाकार आस्था जायसवाल जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी के बीबीए विभाग की छात्रा है.