डॉ पुरुषोत्तम कुमार, जमशेदपुर.
हमें पता हो या ना हो
हम अपना निर्माण
हर क्षण करते हैं
बिन जाने नासमझी में
अपना ही नुकसान
अनजाने कर लेते हैं
मनुष्य इस धरती का
सबसे अनोखा प्राणी है
बड़े करीने से गोविंद ने
छोटी सी काया में
असीम की अनंत संभावनाओं को
बीज रूप में
उसके भीतर छिपा रखा है
परिवार, समाज और संस्कृति
अपने विचारों और रिवाजों से
उसका सामाजिक और सांस्कृतिक
परिशोधन करते हैं
इसलिए किनके साथ उठते बैठते हैं
आपके जीवन पर
गहरा असर छोड़ जाता है
कभी-कभी अनायास
जीवन में वैसे व्यक्ति
मिल जाते हैं
जो रहते तो इस लोक में हैं
कद काठी बिल्कुल हमारी जैसी
पहचान थोड़ी मुश्किल है
किंतु जिनके पास
अलौकिक तरंगे
सदा घिरी रहती हैं
जिसका एहसास
गहन मौन के क्षणों में
जीवन को नहला जाता है।
ऐसा व्यक्ति जब कभी
जीवन में मिलता है
वह आपका परम सखा
परम रहस्यदर्शी
और आपका गुरु है।
हमें ऐसे व्यक्ति की तलाश
जारी रखनी है
जिसके पास बैठकर
विचार गिरने लगते हैं
मन शांत होने लगता है
और घेरने लगती है
परम दिव्यता
समय रुकने लगता है
सांसे थमने लगती है
परम संगीत गुंजने लगता है
दिव्य प्रकाश बरसने लगता है
मृत्यु से अमृत में प्रवेश
कराने वाला कोई और नहीं
वह आपका गुरु होता है।l
डॉ पुरुषोत्तम कुमार वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी, (प्रवर कोटि) संयुक्त निदेशक (राजभाषा) स्तर तथा एसोसिएट प्रोफेसर, AcSIR के पद पर कार्यरत हैं.
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