डॉ. प्रशांत जयवर्द्धन.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के एक आंकड़े के अनुसार 2022 में 7,50,365 नए छात्रों ने उच्च अध्ययन के लिए विदेश की उड़ान भरी, आंकड़ा छह वर्षों में सबसे अधिक है. रिपोर्ट के अनुसार 2022 में कुल 13.2 लाख भारतीय छात्र विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं. 2024 तक यह संख्या 18 लाख तक पहुंच जाने का अनुमान है.0
हर वर्ष भारत में 12वीं के नतीजे आते ही एडमिशन की होड़ लगती है. देश के प्रतिष्ठित कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने की चाहत रखने वाले कट ऑफ (अब सीयूईटी)) का इंतजार करते है. पश्चिमी देशों में पतझड़ की शुरुआत के साथ एक और होड़ देखने को मिलती है वह है देश के बाहर जाकर पढ़ने वाले युवाओं की.
परदेश में पढ़ाई का चलन हमारे यहां कोई नया नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में यह चलन तेजी के साथ बढ़ा है, आंकड़े तो यही कहते है. यह हमारे लिए चिंता का विषय है. बदलते पाठ्यक्रम, घटती दूरियां, वैश्विक संबंध, अवसर और अनुसंधान के नए मौकों के अलावा एक प्रमुख कारण हमारी शिक्षा व्यवस्था भी है. विदेश जाने वाले अधिकांश छात्रों का इस मुद्दे पर एक सा जवाब होता है देश में विकल्पों की कमी. क्या वाकई देश में विकल्पों की कमी है या जेडजेड जेनेरशन की आकांक्षा को पूरा करने में भारतीय शिक्षा प्रणाली की नाकामी? इस सवाल के कई उत्तर हो सकते है पहला – भारत के प्रतिष्ठित कॉलेजों और संस्थानों में सीटों का टोटा है. हमारी शिक्षा व्यवस्था में अभी भी सर्जिकल स्ट्राइक होना बाकी है. विश्व के टॉप 100 शैक्षणिक संस्थानों में देश के संस्थानों के नाम उंगलियों पर गिने जा सकते हैं. तो दूसरी तरफ अवसरों का नया संसार. विश्व स्तरीय फैकल्टी, आधुनिक सुविधाओं से लैस परिसर, शोध के अवसर, दूसरी संस्कृति के साथ मेलजोल, बड़ा वैश्विक नेटवर्क और वैश्विक प्रोफेशनल टैग के साथ शानदार रोजगार का अवसर जो परदेश में मिलता है युवा पीढ़ी को आकर्षित कर पलायन के लिए मजबूर करता है.
प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा
भारतीय शिक्षा प्रणाली और देश के टॉप विश्वविद्यालयों में छात्रों को दाखिला देने का तरीका बहुत प्रतिस्पर्धी है. वैश्विक परिवेश और भारतीय परिवेश में एक बड़ा अंतर है. आज दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में प्रतिस्पर्धा और टेस्ट आधारित परिणाम के वैकल्पिक साधनों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है. वहीं भारत में टेस्ट के रास्ते मेरिट की तलश को बढ़ावा दिया जा रहा है.
सीयूईटी का आगमन
पलायन को बढ़ावा देने में साझा विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) को भी अहम कारक माना जा रहा है. इरादा तो वरदान साबित करने का था लेकिन अब कक्षा 12वीं के अंकों से तय नहीं होगा कि किस कॉलेज में दाखिला मिलेगा. सीयूईटी ने कट-ऑफ प्रणाली का पटाक्षेप कर दिया है. देश में करीब 14 लाख छात्र स्कूलों से पास होकर निकलते हैं और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में महज 2,00,000 सीटें हैं. आईआईटी में 17 हजार और आईआईएम में 2400 सीटें है. साफ है कड़ी प्रतिस्पर्धा से कई छात्र दिलचस्पी गंवा रहे हैं. उन्हें लगता है आईआईटी, आईआईएम और देश के टॉप कॉलेजों में एडमिशन की दौड़ में शामिल होने की जगह टॉप की 100 फॉरेन यूनिवर्सिटी से डिग्री लेना ज्यादा फायदेमंद है.
विकल्प का अभाव
आज के युवा प्रयोगवादी हैं और उच्च शिक्षा में अलग सेटअप को तलाशते हैं. बदलते जमाने के अनुरूप ऑफ बीट कोर्स करना चाहता है. अधिकांश छात्रों को यहां की तमाम यूनिवर्सिटी में उपलब्ध पाठ्यक्रम निरर्थक लगते हैं. वहीं विदेशी शिक्षातंत्र उन्हें खुद को अभिव्यक्त करने, समीक्षा और आलोचना करने की आजादी देते हैं. छात्र विदेशों में ऐसे कोर्स, विषय और विशेषज्ञता के विकल्प चुन रहे हैं जो उद्योगों के अनुरूप हो और बदलती तकनीकी के लिहाज से अपडेटेड भी हो. युवाओं का रुझान खाद्य सुरक्षा, डिजिटल टेक्नोलॉजी, जलवायु परिवर्तन, हरित ऊर्जा, डेटा साइंस, एनालिटिक्स, फिन-टेक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निग में ज्यादा है. एटमॉस्फेरिक साइंस जैसे नए विषय पढ़ने वालों की संख्या भी बढ़ी है. तमाम कोशिशों के बावजूद हमारी शिक्षा प्रणाली वह सब नहीं दे पाती जो इन विश्वविद्यालयों में मिलता है.
ऑफ बीट कोर्स की चाहत
आज के युवा स्वाभाविक तौर पर प्रयोगवादी हैं और अलग सेटअप की तलाश में हैं. खाद्य सुरक्षा, डिजिटल टेक्नाेलॉजी, जलवायु परिवर्तन, हरित ऊर्जा, डेटा साइंस और एनालिटिक्स, फिन-टेक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, पृथ्वी विज्ञान, एनवायरनमेंट, और एटमॉस्फेरिक साइंस जैसे विषय इनके पसंद को दर्शाती है.
ऋण और छात्रवृत्ति सुविधा
शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और देश में विदेशी शिक्षण संस्थानों के लिए द्वार खोलने की घोषणा ने जितना आकर्षण पैदा नहीं किया जितना विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों को बिना गारंटी मिलने वाला ऋण, जो छात्रों के लिए बेहद सुलभ हो गया है और हालिया वर्षों में ऋण प्रक्रिया भी आसान हुई है ने परदेश जाने वालों को आकर्षित किया है. विदेशी विश्वविद्यालयों में जाने का एक और आकर्षण है छात्रवृति सुविधा. माता पिता के लिए बच्चों कि शिक्षा खर्च एक निवेश की तरह है खासकर जब मामला विदेश जाकर पढ़ाई करने का हो.
बदलाव से परहेज
एक तरफ बहुसांस्कृतिक विश्वविद्यालय का अनुभव, रुचि और रुझान के दूसरे विषयों को सीखने समझने का अवसर, वैश्विक अनुभव और सांस्कृतिक विविधता के साथ वैश्विक स्वीकार्यता और प्रोफेशनल टैग है वहीं हम आज भी पढ़ाई के घिसे-पिटे और रटते पीटते तरीकों से बाहर नहीं आना चाहते. तमाम उपायों के बाद भी अभी तक हम वह दे पाने में नाकाम रहे है जो छात्रों को चाहिए.
झारखंड सरकार की पहल
एक तरफ उच्च शिक्षा और वैश्विक रोजगार को लेकर भारतीय छात्रों का बढ़ता पलायन है. वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार ने मरांग गोमगे जयपाल सिंह प्रवासी छात्रवृति योजना के जरिये अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाती, अल्पसंख्यक और पिछड़ी जातियों के छात्रों को विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया है. 25 विद्यार्थी योजना के तहत झारखंड के छात्रों को यूके और नॉर्थन आयरलैंड के 110 विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिलेगा. इंग्लैंड के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर सकते है. वर्ष 2020-21 में 7 छात्रों को छात्रवृति प्राप्त हुई थी. राज्य में अनुसूचित जनजाति का साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम है. योजना के जरिये सरकार जनजातीय समुदाय के शैक्षिक स्तर को पाटना चाहती है.