वरुण प्रभात. गूँजा था मेरी कानों मेंतुम्हारे झंकृत शब्दजो नारे की शक्ल मेंचढ़ गया था हरेक जुबा परबेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ…
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निवेदिता श्रीवास्तव गार्गी. दहलीज लौट आई उस दहलीज,उसी पुराने चौखट पर,इंतज़ार का शुरू सिलसिला करने,चूड़ियों की खनक औरनूपुर की साज…
राकेश पांडेय. बेबस प्रेम न साथ रह पाता हूं, ना दे पाता उपहार प्रिय।दो जून की रोटी के लिए, बंट…
डॉ. पुरुषोत्तम कुमार ऐसा क्यों होता है? भारत के इस वृहत खंड मेंराजनीति करने वालेकलुषित मानसिकता लेकर हीसदा सफल क्यों…