प्रियंका कुमारी, जमशेदपुर.
23 सितम्बर, 1908, बिहार का
जिला मुंगेर, धरा उत्सव , गगन,
जयघोष मना रहा था।
शौर्य की गाथा लिखने अद्वितीय,
जीव मही पर अवतरण ले रहा था।
उन्मुक्त करने अंग्रेजी दासतां से,
उसने प्रदीप्त ज्वाला सुलगायी।
रक्तिम स्याही कलम को भर;
जनता हृदय में अनल लगायी।।
धधक गई राष्ट्रहित-ज्वाला भारत में
गलियों में शोर मची थी।
दिनकर के हथियार ने, समूचा;
भारत में इतिहास रची थी।।
राष्ट्रहित पर मरने को आतुर,
दिनकर ने संकल्प लिया था।
स्वतंत्र करने भारत को,
उच्च शपथ अनुष्ठान किया था।।
क्रांति का बिगुल बजाकर
राष्ट्र को वे जगा रहे थे।
बहिष्कार अंग्रेजी वस्तु का करो,
ऐसा नारा लगा रहे थे।
डोल गई सकल सृष्टि ,
नेक कलम की जयघोष से।
थर्रा गयी अंग्रेजी सिंहासन ,
उनके शब्दों के कल- घोष से।
जीवित सदा उर में रहेंगे,
शब्द शोणित बनकर बहेंगे।
जब तक दिवा नभ में प्रदिप्त,
तब तक दिनकर अमर्त्य रहेंगे।।
हे तेज पुण्य आत्मा!
कोटि नमन हम सदा करेंगे।
धार अतुल शब्द शौर्य के,
जग में सदा बहेंगे।
प्रियंका कुमारी जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी में एमएड विभाग की द्वितीय सत्र की छात्रा है.
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