डॉ पुरुषोत्तम कुमार.
हे राम, इनका भी उद्धार करो
हे राम, राम, हे अविनाशी
प्रमुदित चितवन,भारतवासी
विश्व प्रेम की, परम दिव्यता
कण कण में है उद्भासित
कई शताब्दी बीत गए प्रभु
हम भटके, राह पर आने में
हे गुणातीत, करुणा सागर
हैं जन्म जन्म ऋणी तेरे
हमें बांटने वाले सारे
इतने वर्षों तक सफल रहे
हे कृपा निधान, तेरे कारण
मिट गए क्लेश बंधन सारे
संत प्रधान सेवक होकर
अग्नि अमित पुरुष बनकर
तेरी आभा का पुंज लिए
सारा भारत उठ खड़ा हुआ
तेरे आने से रामराज्य
फिर से भारत में आया
कोई शोषित वंचित न हो
नया सवेरा अब आया
हे राम मेरे, हे राम मेरे
सदियों की अब मिटी गुलामी
भारत की सारी भाषाएं
पुलकित हो गौरव दिवस मनाएं
कुछ विभाग विज्ञान के ऐसे
अखिल विश्व में मान बढ़ाएं
प्रधानमंत्री जिसके अध्यक्ष हैं
मानव हित नूतन कीर्ति बनाए
एक विभाग है यहां उपेक्षित
किसी की नजर न जिस पर जाए
वैज्ञानिक समान योग्यता लेकर
हिंदी कर्मी होकर जो आए
भारत माता की भाषा में
जन-जन तक जो अलख जगाये
आइसोलेटेड की दीवारों में
कैद बनाकर रखा जाए
इसे छोड़कर सभी कार्मिक
प्रतिपल आनंद मोद मनायें
चार वर्षों के अंतराल में
पदोन्नति नई- नई सब पाएं
ग्यारह बरसों में एक बार
पदोन्नति आइसोलेटेड पाएं
एम ए सी पी से करके वंचित
घोर प्रताड़ना जिन्हें दी जाए
हे राम भेद की यह दीवार
प्रतिपल भीतर-भीतर खाए
इन भाषाविद् के राम तुम्हारे
पीड़ा अब तो सहा न जाए
हे राम, कहां हो छुपे हुए
करुण दृष्टि अब तो कर दो
अब तो आया है रामराज
पीड़ा सदा सदा हर लो
आजादी के बाद आज तक
नहीं किसी ने बात सुनी
अब तो करुणा कर दो प्रभु तुम
इनका भी उद्धार करो
इनका भी उद्धार करो।