प्रियंका कुमारी.
जननी अगर तु नहीं होती
तरुवर पात नहीं होता यहाँ,
होता नहीं चाँद गगन में।
अनल अनिल न वारि ये,
ऊर्जा न होती रवि तपन में।।
होती लता नहीं हरी भरी,
वसुधा में नहीं ममता होती।
जननी ;अगर तु नहीं होती,
जननी ;अगर तु नहीं होती।।
दिव्यांगना, विरांगना तुम हो,
ढाल तु प्रकाण्ड तु, महाकाल तु।
इतिहास बसता जिस गोद में,
ऐ माँ! हो धरा विशाल तु।।
दिनकर की नहीं किरणें होती,
न होते अर्जुन,चाणक्य,एकलव्य!
शून्य में विलीन ये दिन रात होता,
जगत में नहीं होता कुछ भी नव्य। ।
उद्गम नहीं,सब मरुस्थल होता,
लावण्या रुप नहीं धरा की होती।
जननी ;अगर तु नहीं होती,
जननी ;अगर तु नहीं होती।।
ऋषि मुनियों की तपस्थली,
दुर्गा बनकर लक्ष्मी आई,
सरस्वती बनकर टेरेसा जग में,
शोला बन विभावरी मिटाई।।
अतीत नहीं प्रदीप्त है होता,
नहीं रंगीन भेषभूषा होती।
जननी ;अगर तु नहीं होती,
जननी; अगर तु नहीं होती।।
इतिहास बैठा जिस सिंहासन पर,
वो राजसिंहासन माता तुम हो।
शीश मुकुट से चमका है भाल ,
ऐ माँ!उस भाल की चमक तुम हो।
स्वभिमान का तरु न खिलता,
सृष्टि न रुप यौवन का लेती!
जननी; अगर तु नहीं होती,
जननी ;अगर तु नहीं होती।।
नोट : कैंपस बूम को खबर-सूचना वाट्सएप नंबर 8083757257 या ईमेल आईडी [email protected] पर भेजे. अगर आप कहानी, कविता, लेख, आलेख लिखते हैं, तो अपनी रचना भी भेज सकते हैं.