प्रियंका कुमारी, जमशेदपुर.
रानी दुर्गावती जी जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
भारत में इतिहास श्रृंखला,
जगमग करता दीपों का ।
चमक रहा है शीश मुकुट,
ज्ञान बारूद के तोपों का।।
बहती सदा स्वभिमान की,
कलकल करती हैं नदियां।
शीतलता रसपान कराती,
पग में आ झुकती हैं सदियां ।।
स्वर्णिम भारत का भाल,
सदा विश्व में लहराता है।
सुरपुर है बसता जहां वह,
अतुल्य भारत कहलाता है।।
कुशल बहादुर शासिका ,
चंदेलों की वह बेटी थी।
जिससे जीता था हौसला,
नेत्रहीनों की वह दृष्टि थी।।
5 अक्टूबर,1524 साल में,
शुभ घड़ी बनकर आई बड़ी।
दुर्गाष्टमी में जन्मी वीरांगना,
इसलिए दुर्गावती नाम पड़ी।।
कालिंजर राजा की थी वह,
अविचल इकलौती संतान।
अद्वितीय पराक्रमी सुंदरी ,
रणचंडी बन हरती अरि की जान।।
हारा था अकबर 51 बार उनसे,
वह दुर्गा काली थी चंडीका ।
शत्रु प्रलय भयंकर आलाप ,
निज राज्य सीमा की अंबिका।।
विरांगना वह भारत की प्रसिद्ध,
कभी नहीं झुकने वाली थी ।
बरछी तीर कमान तलवारों से,
निडर राज्य चलाने वाली थी।।
मुगल अकबर कई बार आये,
हर बार रानी ने छक्के छुड़ायी ।
वार पर वार; प्रहार पर प्रहार ,
फिर भी रानी न तनिक डगमगायी ।।
शासन सत्ता और हथियार ,
संग्राम सिंह की बहुरानी थी।
दलपत जी की प्रिया दुलारी,
वही गोंडवाना की रानी थी।।
विधवा होकर डरी नहीं,
उनकी भरी जवानी थी ।
16 वर्षों तक सत्ता सम्हाल,
बनी रहीं सबके हिय की रानी थी।
मुगलों ने अंतिम युद्ध ठानी थी,
हलके हुए थे रानी के सैन्य बल।
कोई छुट्टी कोई दूर पहले पर था,
तभी अकबर आया संग ले निज दल।।
लड़ते लड़ते रानी दुर्गावती ,
थक कर हो चली हताश थी।
अब सासों की अंतिम घड़ी ,
हार कर हो चुकी निराश थी।।
शत्रु हाथ जाने से अच्छा,
रानी ने खंजर सीने में भोंका।
और प्रतिष्ठा की वेदी पर लेट,
मृत्यु के हवन कुंड में खुद को झोंका।।
24 जून 1564 को स्वयं ही
वरण किया अमर बलिदान।
युगों – युगों तक याद करेगा,
गाथा भारत भूमि ,ये बलिदान।।