कैलाश नाथ शर्मा, ग़ाज़ीपुरी.
रउरे किरिया
रउरे किरिया ए राजा ,रउरे किरिया ।
अबकी होली ना मनाइब ,रउरे किरिया ।।
रउरे किरिया ए,
पुआ पुड़ी नाद फेकब,नइहर जाइब ।
लुगरी पर दिन काटब, मुंह ना देखाइब ।।
जिनगी में ना आइब अब ,राउर भिरिया ।
रउरे किरिया ए,
मलिया के अप्टन पिया,मलिये झुराइल ।
ना जानी रउआ बानी ,केने अझुराइल ।।
जानत नइखी कइसन,होखेलीं तिरिया ।
रउरे किरिया ए ,
सरधा न पुजल पिया ,पियरी के हमार जी ।
गोतिनि के बोलिया ,हँसेला जवार जी ।।
अब गुझिया छोड़ खईहा ,सवतिन के खिरिया ।
रउरे किरिया ए,
ना जानी धनिया के ,बुरबक बनवलसी ।
मेहरी के मरद सङ्गे, झगरा लगवलसी ।।
सँगहिं मनाइब होली ,तुरा न किरिया ।
रउरे किरिया ए,
कैलाश नाथ शर्मा,,,ग़ाज़ीपुरी,,,
संगठन सचिव, जमशेदपुर भोजपुरी साहित्य परिषद
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