- दुनिया के अलग अलग देशों में वर्चस्व और जमीन कब्जाने के लिए चल रहे यूद्ध और स्थिति पर पढ़िए युवा साहित्यकार वरुण प्रभात की ये दो कविताएं.
वरुण प्रभात.
जमीन हमारी
जंगल हमारा
नदी हमारी
विस्थापित हम ही
हम नक्सली
हम आतंकवादी
हम उग्रवादी
हम जंगली
हम ग्वार
हम अपढ़
हम नंगे
हम भूखे
हम लड़ते हैं
अपना अस्तित्व
बचाने को
रोपना चाहते हैं
अपनी सभ्यता का बीज
अपनी जमीन में
हमारी बनायी
कुदाल, टाँगी, गैंता, तीर-धनुष
देता है, जीवन, रोशनी
ऐ राजा,
तुम्हारी बनायी
बंदूक, बारूद ,बम
खत्म कर देता है
जमीन, जंगल, नदी
और जीवन भी
बताना
आतंकवादी कौन
हम या तुम ?
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सुना था
असहाय होते हैं
बच्चें, बूढ़े, औरतें
गाजा से उठती
धूँएं की गुब्बारें
आसमान को छूती
आग की लपटें
गरजतें राकेट
तड़तड़ाती गोलियां
मलबे में बदल चुका
शहर, गाँव, देश
फिर भी,
अपने दूधमुँहें को
दूध पिलाना नहीं भूली
फिलस्तीन की औरतें
काँपतें हाँथों से
मलबों के ढ़ेर से
निकाल लेता है
अपने जवान बेटे का शव
फिलिस्तीनी बूढ़ा बाप
बीना थके,
चुमने के लिए
उसका माथा
घने अँधेरे में
शवों के ढ़ेर पर बैठा
फिलिस्तीनी बच्चा
जीवन मूल्यों को आँकता
मोड़कर सूखी रोटिया
चबाता है
दूध दांतों से
सुनों विश्व के तानाशाहों
तुम्हारे मार देने से
खत्म नहीं हो जाता जीवन
वह जन्मता है,फिर
नये आकार में
अपनी कुर्सियों से जड़े
हो चुके हो तुम, असहाय
जैसे,
भगत सिंह की फांसी से पहले
हुआ था
विश्व का तानाशाह, ब्रिटेन
तोड़कर
अपने कानून को
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