प्रियंका कुमारी, जमशेदपुर.
तलाश जिंदगी की जारी है….
बहुत बेखबर है जिंदगी,
पर लुत्फ़ सासों का उठाती है।
हम जिएं या नहीं जिएं,
पर वही नखरे बहुत उठाती है।।
जिंदगी यूं ही रिझाती रही,
स्वप्नों की दुनिया दिखाती रही।
ढूंढते हैं स्वप्नों में अरमान अपने,
तिमिर में दिवा बन जलाती रही।।
मुखौटा मुस्कान का मुख पर,
सहज ही सजाती रही।
मैं अश्रुपूरित नैनों में डूब कर,
जिंदगी को ही नहाती रही।।
न्योछावर कर्तव्य बुनियाद पर,
ये मैं भी उसे समझाती रही।
न मानी न मुझको वो समझी,
बात बात पर ही बहलाती रही।।
मायूस हो जब मैं बैठ जाती,
दौड़ आती मुझको हँसाने को।
कभी पास कभी दूर कर,
आ जाती मुझे रिझाने को।।
ये कैसी उन्मुक्त दास्ताँ है,
जंजीर पग में और आजादी है।
आहुति स्वप्निल लक्ष्यों की,
और कहूँ ये तल बुनियादी है।।
ढूंढ रही धरा गगन सम्मत में,
तलाश जिंदगी की जारी है।
ऐसे ही संदर्भ में मैं पुछ रही,
ऐ जिंदगी!कहाँ जगह हमारी है।।