राजीव दुबे.
देख कर हमारी शहादत जिनको खुशी मिलती है,
है अपना, पर शक्ल पड़ोसी से मिलती है.
ऐसा भी नहीं है कि मालूम ना हो ठिकाना उसका,
पर सियासत के दिल में वोटों की बेबसी मिलती है.
अजब रवायत है इस शहर की,
वफाओं को भूख
और धोखें को बिरयानी की कटोरी मिलती है.
वतन से मोहब्बत ही हमें
खामोश रहने नहीं देती,
वरना चुप रहने की हिदायत तो हमें भी मिलती है.
वतन परस्ती का तो यह आलम है
यहां राज जुबान पर तो मिलती है
पर रगों में नहीं मिलती है.
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