- सावन की यात्रा में जुड़िए हमारे साथ और जानिए कोल्हान और आसपास स्थिति प्राचीन शिवलिंग की पौराणिक और रहस्यमयी चमत्कारी मंदिर कहानी
- आइए आज दर्शन कीजिए भगवान शिव के कालेश्वर मंदिर की
- जहां भगवान करते हैं आपकी प्रार्थना स्वीकार, जहां हर मन्नत होती है पूरी
- मंदिर को प्राप्त है गालूडीह माता रंकिणी मंदिर के बाबा विनय दास का संरक्षण
स्पेशल स्टोरी, जमशेदपुर.
भगवान शिव और उनसे जुड़ी हर कहानी दुनिया की सबसे पौराणिक महसूस होती है. शिव या शिवलिंग से जुड़ी कहानियों, दंत कथाओं को सुनने के बाद एक आस्था, विश्वास के साथ रहस्य, राेमांच की अनुभूति होने लगती है. स्वयंभू और आपरुपी शिवलिंग अपने साथ कई रहस्यमयी कहानी समेटे हुए है. हम अपने कैंपस बूम पर आप सभी पाठकों को इस सावन में ऐसे में ही शिवलिंग का दर्शन कराएंगे जो आपरुपी और स्वयंभू है यानी जिसे किसी ने स्थापित नहीं किया है बल्कि वह स्वयं से वहां आये है और जिनकी पहचान और पूजा आरंभ होने के पीछे भी एक रोचक कहानी और घटना है. आज पहली कड़ी में जमशेदपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर स्थित हाथीबिंदा पंचायत के साधुडेरा गांव में विराजमार भगवान कालेश्वर व गुप्त गंगा की कहानी पढ़िए. आखिर यहां शिवलिंग की कैसे पहचान हुई और यहां स्थित महज चार फूट के गहरे कुएं को क्यों गुप्त गंगा कहा जाता है.
कालेश्ववर शिव मंदिर
पूर्वी सिंहभूम जिला के हाथीबिंदा पंचायत स्थित साधुडेरा गांव में हिल नदी (अज्ञानता के कारण जिसे लोग गुर्रा नदी कहते हैं) के किनारे स्थित कालेश्वर शिव मंदिर की कहानी काफी रोचक और रहस्यमयी है. शिवलिंग की खोज से लेकर, पूजा और मंदिर निर्माण की कहानी भी काफी रोचक है. बताया जाता है कि इस मंदिर का प्रमाणित इतिहास 250 से 300 साल पूराना है. लेकिन शिवलिंग कितना प्राचीन है इसका प्रमाण अब तक इसलिए नहीं मिल पाया है क्योंकि सरकार या पुरातत्व विभाग ने इसको लेकर कोई पहल नहीं किया है.
ऐसे ही हुई पहचान :
दंतकथा के अनुसार एक गौ पालक की गाय हर दिन चरने के बाद जब वापस घर लौटती थी, तो ग्वाला दूध निकालता था, लेकिन कुछ दिनों से गाय दूध देना बंद कर दी थी. ग्वाला काफी परेशान था. एक दिन वह अपनी गाय का पीछा करता हुए एक जंगल की ओर पहुंच जाता है, देखता है कि उसकी गाय एक स्थान पर जाकर रूक जाती है और उसके थन से दूध की धार स्वत: निकलने लगती है. ग्वाला पूर्व से इस तैयारी में चला था कि उसके गाय का दूध जो भी चुराता है वह उसे मारेगा. इसलिए वह अपने साथ हथियार भी रखे रहता है. गाय के दूध को निकलता देख ग्वाला काफी गुस्सा में झाड़ी की ओर जाता है और बगैर कुछ देखे हथियार से जमीन की ओर हमला कर देता है. लेकिन ग्वाला को किसी पत्थर से हथियार के टकराने जैसी आवाज आती है जब वह झाड़ी हटा कर देखता है, तो वहां एक शिवलिंग के आकार का पत्थर दिखाई देता है. सारी बात वह गांव वालों को बताता है. उसके बाद गांव वाले उस स्थान पर साफ सफाई शुरू करता है. इस दौरान वहां एक ही स्थान पर दो शिवलिंग मिलता है. इसलिए इसे जोड़ा शिवलिंग (कुछ लोग शिव पार्वती मानते हैं) भी कहते है. ग्वाला के हमला से शिवलिंग पर चोट के निशान भी साफ दिखते हैं. शिवलिंग के पत्थर का रंग अन्य आपरुपी शिवलिंग से ज्यादा काला है, इसलिए इसे कालेश्वर शिव मंदिर नाम दिया गया. यहां हर दिन भक्त जलाभिषेक के लिए आते हैं, लेकिन शिवरात्रि और सावन में भक्तों की काफी भीड़ लगती है.
हावड़ा-मुंबई रेललाइन से जुड़ी है मंदिर निर्माण की कहानी
कालेश्वर शिव मंदिर एक प्राचीन मंदिर है. लेकिन इसके वर्तमान भव्य रूप की कहानी भी काफी रोचक और सच्ची घटना से जुड़ी है. दरअसल तकरीबन 150 वर्ष पूर्व टाटा से होकर हावड़ा-मुंबई रेल लाइन बिछाने का कार्य चल रहा था. काम की गति अपनी रफ्तार में थी, लेकिन कुछ कुछ बाधाए आती रही. काम से जुड़े इंजीनियर, ठेकेदार आसनबनी की ओर थे. उस वक्त यह क्षेत्र घनघोर जंगल वाला था. सामने साधुडेरा गांव और उसका शिव मंदिर ही एक ऐसा स्थान था, जहां सुबह से शाम उजाला रहने तक कुछ लोग दिखाई देते थे. इंजीनियर और ठेकेदार भी यहां कभी कभार आकर बैठते थे. काम की शिथिलता को देखते हुए इंजीनियर ने काम की सफलता की प्रार्थना करते हुए मंदिर निर्माण का प्रण अपने मन में लिया. इसके साथ एक सच्ची घटना यह भी है कि एक कोई रेलवे ठेकेदार (कोई अग्रवाल) थे जिनकी संतान नहीं थी, कालेश्वर मंदिर में उन्होंने संतान प्राप्ति की प्रार्थना की. जिसके कुछ ही माह बाद उनके घर एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. अपनी प्रार्थना पूरी होने पर उन लोगों ने मंदिर को पूर्ण रूप दिया. जो आज भव्य रूप में दिखाई देता है. यहां के वाशिंदे और उनके पूर्वजों से बाबा कालेश्वर की कहानी सुनते आ रहे हैं, लोग तीन सौ साल पूर्व पहचान होने की बात बताते हैं.
आखिर एक कुआ को क्यों कहते हैं गुप्त गंगा
मंदिर से महज सौ मीटर की दूरी पर एक छोटा कुआं है जिसे गुप्त गंगा, पाताल गंगा के नाम से बोलते हैं. जिसकी गहराई महज तीन से चार फीट है. इस छोटे से कुएं में वर्ष भर न केवल पानी भरा रहता है बल्कि कुएं के ऊपरी हिस्से के जमीन से अनवरत पानी की धार बाहर बहती रहती है. मंदिर के बगल से गुजरने वाली नदी का पानी सूख भी जाता है, लेकिन नदी तकरीबन 40 से 60 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस कुएं का पानी कभी नहीं सूखता है.
पानी के बहाव से सामने एक तालाब बन गया है. कालेश्वर मंदिर आने वाले भक्त इसी गुप्त गंगा के जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं. पूर्व में यहां से पानी की धार निकलती थी, गड्ढ़ा था, इसलिए मंदिर कमेटी के लोगों ने उसे ईंट से घेर कर संरक्षित करते हुए कुएं का रूप दे दिया है.
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यूपी के साधु रामलखन बाबा से वर्तमान में विनय दास बाबा का मिलता आ रहा संरक्षण
इस मंदिर को शुरू से साधु, संत सन्याशियों का संरक्षण प्राप्त होता आ रहा है. 1950 के दशक में उतर प्रदेश के बनारस से आये साधु संतों की टोली में बाबा रामलखन दास ने इस मंदिर में कई वर्ष तक साधना की. उनके अंदर एक अलौकीक शक्ति होने की बात ग्रामीण बताते हैं. उनकी मृत्यु के उपरांत वर्तमान में गालूडीह माता रंकिणी मंदिर के बाबा विनय दास का संरक्षण कालेश्वर मंदिर को प्राप्त है. बताया जाता है कि विनय दास बाबा की उम्र अभी 107 वर्ष है.
ऐसे पहुंचे मंदिर
कालेश्वर शिव मंदिर, पूर्वी सिंहभूम जिला आसनबी के हाथीबिंदा पंचायत के साधुडेरा गांव में है. जमशेदुपर के साकची से इसकी दूरी तकरीबन 25 किलोमीटर है. टेल्को कॉलोनी, गोविंदपुर मुख्य सड़क और गोंविदपुर रेलवे फाटक पारकर आसनबनी की ओर आना है. खैरबनी रेलवे फाटक और लुआबासा मोड़ (फुटबॉल मैदान) पार करने के बाद बाई ओर एक छोटा सा काली मंदिर आयेगा उसके ठीक सामने से दाहिनी ओर रास्ता गांव की ओर जाता है. दाहिनी ओर कालेश्वर मंदिर का बोर्ड लगा हुआ है. यहां से तकरीबन पांच किलोमीटर की दूरी चलने के बाद यह मंदिर मिलेगा. गांव की कच्ची पक्की सड़कों के बीच से होकर गुजरना होगा.
वर्तमान मंदिर कमेटी एक नजर में
मुख्य संरक्षक – विनय दास बाबा
संरक्षक – कमल लोचन महतो
अध्यक्ष – हरेंद्रनाथ कश्यप, सचिव – भूपति महतो, कोषाध्यक्ष – बुद्धेश्वर महतो, सदस्य – मुखिया कृष्णा मुंडा, रविंद्रनाथ भगत, चक्रधर महतो, विश्वनाथ महतो, अशोक महतो, गुरुपदो दास, गणेशचंद्र महतो, शत्रुघ्न महतो, रामचंद्र भगत, सुदर्शन महतो, गधाधर भगत, दिनेश सरदार, सोलने पात्रो, देवशरण मंडल, वीर सिंह महतो अन्य शामिल है.