कैलाशनाथ शर्मा, ग़ाज़ीपुरी.
,,,,,,,,,,,,,,रघुराई,,,,,,,,,,,,
बन से घर अइनी रघुराई ,
घर घर बाजे लागल बधाई।
बन से घर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
भरत, मिलन करी गोड़ धो अनि,
भईया के गरे लगवले ।
आईं राज हई आपन लिहिं ,
अपने मन के बात बतवले।।
परजा सङ्गे भूल भईल होखे ,
मोहे माफ़ करबि ए भाई ।
बन से घर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जानकी अपना मन के बात,
माई कौशिल्या से बतीयवनी ,
मांडवी ,उर्मिला सुसुकी, सुसुकी।
सीता जी के गरे लगवली ,
देखते राम सीता ,लक्ष्मण के।
सेवकन मंद, मंद मुस्काई ।।
बन से घर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वेद ,वेदांत,ब्राम्हण रहुईं ,
राम राज तिलक गद्दी अइले ।
तीनों लोक प्रजा, ऋषि सनमुख ,
गुरु वशिष्ठ मुकुट शिर धइले।।
देव, ऋषि, गुरु,कुल आशीष ,
अयोध्या हर्षित भये भाई।
बन से घर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,