- कलम की धार को कमजोर करने के लिए ब्रिटिश शासन ने जेल भेजा, राजद्रोह का मुकदमा भी चलाया
- संपादन सम्मेलन और हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे माखनलाल चतुर्वेदी
- पत्रकारिता में विशेष योगदान के लिए मध्य प्रदेश में उनके नाम से माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एंव जनसंचार विश्वविद्यालय का होता है संचालन
- पद्मभूषण माखनलाल चतुर्वेदी को हिंदी साहित्य का स्तंभ भी कहा जाता है
Central Desk, Campus Boom.
कोई व्यक्ति यूं ही युगों युगों तक याद नहीं किया जाता है. इसके लिए उसकी मेहनत, उसका जज्बा, त्याग और ज्ञान के भंडार के बाद भी व्यवहार में विवेकशील होना ही उसे और उसके नाम को युगों तक जिंदा रखता है. ऐसे ही नामों में शामिल है हिंदी साहित्य जगत के स्तंभ और एक भारतीय आत्मा के रूप में विख्यात साहित्यकार, पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी का नाम. आज 4 अप्रैल को माखनलाल चतुर्वेंदी की 135वीं जयंती है. आज ही के दिन 4 अप्रैल 1889 को माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिला के बाबई में हुआ था. आज उनकी जयंती पर पढ़े उनके जीवन से जुड़ी रोचक कहानी. यह लेख सभी साहित्यकार को पढ़ना चाहिए, तो एक पत्रकार को भी पढ़ना चाहिए. उनकी जीवनी हर एक उस व्यक्ति को पढ़ना चाहिए, जिनके लिए राष्ट्र पहले है. एक युवा अध्यापक किस तरह से नौकरी छोड़ पत्रकारिता के क्षेत्र में आता है और पत्रकारिता में नौकरी करने नहीं बल्कि राष्ट्रसेवा को अपना जीवन समर्पित करता है. पढ़े ये पूरी रिपोर्ट.
जन्म – 04 अप्रैल 1889 – होशंगाबाद
निधन – 30 जनवरी 1968 – खंडवा
माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती पर हम उनकी जीवनी की बात उनके जीवन के उस काल शुरू करेंगे, जब उन्होंने त्याग और समर्पण की मिसाल कायम की. बात देश की स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी है. 1907-1908 का दौर था, देश में आर्थिक स्वतंत्रता के लिए स्वदेशी का मार्ग चुना गया था, सामाजिक सुधार के अभियान गतिशील थे और राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता की चाह के रूप में सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई थी. ऐसे समय में माधवराव सप्रे के ‘हिंदी केसरी’ ने वर्ष 1908 में ‘राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार’ विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया. खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया. अप्रैल 1913 में खंडवा के हिंदी सेवी कालूराम गंगराडे ने मासिक पत्रिका ‘प्रभा’ का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलालजी चतुर्वेदी को सौंप दिया.
1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में पहली गिरफ्तारी के लिए हुए सम्मानित
सितंबर 1913 में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए. इसी वर्ष कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’ का संपादन-प्रकाशन आरंभ किया. 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलालजी ने विद्यार्थीजी के साथ मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गांधी से मुलाकात की. महात्मा गांधी द्वारा वर्ष 1920 के ‘असहयोग आंदोलन’ में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी देने वाले माखनलालजी ही थे. वर्ष 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें गिरफ्तारी देने का प्रथम सम्मान मिला.
माखनलाल चतुर्वेदी आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘छायावादी युग’ के अग्रणी कवि और पत्रकार माने जाते हैं. वहीं माखनलाल चतुर्वेदी छायावाद युग में ‘जयशंकर प्रसाद’, ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला‘, ‘सुमित्रानंद पंत’ और महादेवी वर्मा के बाद उन चुनिंदा कवियों में से एक थे जिनके कारण वह युग विशेष हो गया.
वहीं आधुनिक हिंदी साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए उन्हें वर्ष 1963 में गणतंत्र दिवस के विशेष अवसर पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उन्हें पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया था. इसके अलावा उन्हें कई कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका हैं जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, देव पुरस्कार व साहू जगदीश पुरस्कार शामिल हैं.
माखनलाल चतुर्वेदी जी कई काव्य रचनाएं जिनमें पुष्प की अभिलाषा, वीणा, वीणा का तार, टूटती जंजीर, नई नई कोपलें, हिमालय का उजाला व वर्षा ने आज विदाई ली अन्य रचनाओं को स्कूल के साथ ही बीए.और एमए के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं. वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं. वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं, इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। आइए अब हम आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात कवि और पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं.
जन्म और शिक्षा
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 04 अप्रैल, 1889 को होशंगाबाद से 14 मील दूर बाबई ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था जो कि पेशे से प्राइमरी स्कूल के अध्यापक थे वहीं माता का नाम सुकर बाई था जो एक गृहणी थीं. अल्प आयु में ही पिता का देहांत होने के कारण परिवार के भरण-पोषण और उनकी शिक्षा-दीक्षा का भार उनकी माता पर आ गया. वहीं उनका बाल्यकाल कई उतार-चढ़ावों के साथ बीता. माखनलाल चतुर्वेदी की आरंभिक शिक्षा घर से ही हुई. लेकिन बाबई जैसी छोटी से बस्ती में प्राथमिक शिक्षा की उचित व्यवस्था ने होने के कारण उनकी माता ने उन्हें उनकी बुआ के पास सिरमनी नामक कस्बे में भेज दिया. यहीं रहकर माखनलाल चतुर्वेदी ने लगभग 10 वर्षों तक रहकर शिक्षा पाई और वहीं से उन्हें काव्य रचना की प्रेरणा मिली. इसके बाद उन्होंने स्वाध्याय से ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती, मराठी व अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया.
15 की उम्र में हो गई थी शादी
जिस समय माखनलाल चतुर्वेदी स्वाध्याय ही कई विषयों का अध्ययन कर रहे थे उसी दौरान उनका वर्ष 1904 में 15 वर्ष की आयु में ग्यारसी बाई से से विवाह हो गया. लेकिन कुछ वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद उनकी पत्नी का गंभीर बीमारी के कारण स्वर्गवास हो गया.
कलम की धार को कमजोर करने के लिए ब्रिटिश शासन ने उन्हें भेजा, राजद्रोह का मुकदमा भी चलाया
वर्ष 1913 में माखनलाल चतुर्वेदी ने प्रभा पत्रिका का संपादन शुरू किया और इसी दौरान उनका संपर्क गणेश शंकर विद्यार्थी से हुआ जिससे उनके जीवन में एक नया मोड आया. वहीं उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन और साहित्य देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया था. एक तरफ जहां वह क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लेते थे थो दूसरी तरफ अपनी कविताओं और पत्रिकाओं के माध्यम से राष्ट्रभक्ति की भावना को व्यक्त व ब्रिटिश शासन का पुरजोर विरोध करते रहे.
इसी कारण ब्रिटिश हुकूमत ने घबराकर उनपर राजद्रोह का अभियोग लगा दिया जिसके कारण उन्हें कुछ वर्ष जेल में भी रहना पड़ा. वहीं वर्ष 1919-1920 के बीच भारतीय राजनीति में महात्मा गांधी का आगमन होने के बाद उनपर गांधी जी के विचारों का भी गहरा प्रभाव पड़ा. बता दें कि जेल से रिहा होने के बाद भी ब्रिटिश हुकूमत द्वारा उनपर कड़ी नजर रखी जाती थी. एक बार जब वह जबलपुर की एक सभा में ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना भाषण दे रह थे तब उनपर परिणास्वरूप 12 मई 1930 को राजद्रोह का अभियोग लगाकर एक वर्ष के लिए जेल में कैद कर दिया.
लेकिप वह ब्रिटिश शासन के इस शोषण व अत्याचारों से तनिक भी विचलित नहीं हुए और मुखर स्वर में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपनी रचनाएं करते रहे. इसके बाद माखनलाल चतुर्वेदी ने वर्ष 1924 में गणेश शंकर विद्यार्थी की गिरफ़्तारी होने के बाद प्रताप पत्रिका के संपादन का कार्यभार संभाला. जिसके बाद वह आगे चल कर संपादन सम्मेलन और हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे.
साहित्यिक परिचय
माखनलाल चतुर्वेदी ने छायावादी युग में कई अद्वितीय काव्य रचनाएं हिंदी साहित्य जगत को दी हैं. वहीं उन्होंने हिंदी साहित्य में काव्य, नाटक और निबंध विधा में मुख्य रूप से रचनाएं की हैं.
गद्यात्मक रचनाएं
- कृष्णार्जुन युद्ध
- साहित्य के देवता
- समय के पांव
- अमीर इरादे: ग़रीब इरादे
- रंगों की बोली
निधन
माखनलाल चतुर्वेदी ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य और पत्रकारिता को समर्पित कर दिया था. वहीं जीवन में आयी किसी भी समस्या से वह तनिक भी विचलित नहीं हुए और उनका डट कर सामना करते हुए आगे बढ़ते रहे. लेकिन 30 जनवरी 1968 को अपने निवास स्थान खंडवा पर उनका निधन हो गया. लेकिन उनकी अनुपम काव्य रचनाओं के लिए उन्हें हिंदी जगत में हमेशा याद किया जाता रहेगा.