अफसोस संस्थापक की जयंती और पुण्यतिथि पर कॉलेज प्रबंधन उन्हें याद नहीं करता. शिक्षाविदों ने भी उनके योगदान को भुलाया.
विशेष रिपोर्ट, जमशेदपुर.
एक व्यक्ति बिहार के मुजफ्फरपुर के छोटे से गांव बनुआ से चल कर जमशेदपुर पहुंचता है. मजदूरों के शहर में वह बतौर स्कूल शिक्षक अपनी सेवा शुरू करता है, लेकिन जन्म, परवरिश, संस्कार और समाज के लिए कुछ कर गुजरने की जिद ने उसके हाथों मजदूरों के इस शहर जमशेदपुर में इतिहास रचने के लिए अग्रसर किया. हम बात कर रहे हैं शिक्षाविद और अविभाजित बिहार के वक्त कोल्हान की धरती पर शिक्षा का अलख जगाने वाले स्व व्रजनंदन किशोर की. व्रजनंदन किशोर महज एक नाम नहीं बल्कि वह अपने आप में एक किताब हैं और वह अपने नाम के साथ इतिहास समेटे हुए हैं. व्रजनंदन किशोर अपने पिता शिक्षाविद, गणितज्ञ और साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी के सहपाठी लक्ष्मी नारायण लाल के साथ जमशेदपुर पहुंचे और यहां आने के बाद गोलमुरी स्थित आरडी टाटा हाई स्कूल में बतौर शिक्षक अपनी सेवा शुरू की, लेकिन इनका जीवन इस नौकरी पर नहीं ठहरा, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में इन्होंने कृतिमान स्थापित किया. उस दौर में उन्हें लौहनगरी का गांधी के नाम से संबोधित किया जाने लगा था. आज यानी 8 अक्टूर को व्रजनंदन किशोर की पुण्य तिथि है. कोल्हान की धरती में शिक्षा की अलग जगाने वाले और ट्रेड यूनियन में अहम भूमिका निभा कर मजदूराें को न्याय दिलाने वाले स्व. व्रजनंदन किशोर की याद में पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट.
जन्म – 15 जनवरी 1929
मृत्यु – 8 अक्टूबर 1975
स्व. व्रजनंदन किशोर के चार बेटे एक बेटी है सभी की पढ़ाई लिखाई जमशेदपुर में हुई. सभी का परिवार जमशेदपुर में ही रहता है. बेटी शादी के बाद से पटना में रहती है. दो बड़े बेटे की मृत्यु हो चुकी है जबकि एक बेटे साउथ प्वाइंट स्कूल से बतौर शिक्षक हाल में ही सेवानिवृत हुए हैं वहीं सबसे छोटे बेटे मनोज किशोर सिंहभूम कॉलेज चांडिल में कार्यरत हैं. यह रिपोर्ट मनोज किशोर से बातचीत और पूर्व के पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख के आधार पर लिखी गयी है.
मजदूर का बेटा डॉक्टर-इंजीनियर क्यों नहीं बनेगा, इस सोच के साथ मजदूरों के लिए कॉलेज की नींव रखी
व्रजनंदन किशोर वह नाम है जिन्होंने जमशेदपुर के भालूबासा में हरिजन स्कूल की स्थापना की. भालूबासा हरिजन स्कूल जहां के दो विद्यार्थी वर्तमान में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और रघुवर दास झारखंड सरकार में मुख्यमंत्री बने. व्रजनंदन किशोर वही नाम है जिन्होंने लाख विरोध के बावजूद 1958 में इस शहर में रातों रात देश के पहले संध्याकालीन कॉलेज की नींव रख दी, जो मजदूरों के लिए था. मजदूर दिन में काम करे और शाम को पढ़ाई कर अपनी डिग्री बढ़ा कर आगे बढ़े साथ ही उनकी सोच थी कि मजदूर का बेटा मजदूर हीं क्यों बने, बल्कि वह डॉक्टर, इंजीनियर क्यों नहीं बन सकता है? अपनी इस उच्च सोच के साथ उन्होंने जमशेदपुर वर्कर्स कॉलेज नाम से महाविद्यालय की स्थापना की, जो आज मानगो और आसपास के ग्रामीण विद्यार्थियों के उच्च शिक्षा का एक बड़ा केंद्र है और कोल्हान विवि का एक प्रमुख अंग है. अपने जीवन काल में ही उन्होंने कॉलेज में स्नातकोत्तर की पढ़ाई शुरू कराने में सफल रहे. व्रजनंदन किशोर यहीं नहीं रूके, घाटशिला में भी इन्होंने घाटशिला वर्कर्स कॉलेज की स्थापना की जो आज वर्तमान में घाटशिला डिग्री कॉलेज के नाम पर जाना जाता है. शहर से लेकर गांव तक, मजदूर से लेकर बच्चे और युवा को बेहतर शिक्षा मिले इसके लिए उन्होंने स्कूल, कॉलेज की स्थापना कर उस दौर में सबसे लोकप्रिय समाजसेवी और समाजसुधारक के तौर पर अपनी पहचान को स्थापित किए.
चुनौतीपूर्ण था कॉलेज की स्थापना, निजी पैसे और चंदा से खड़ा किया भवन
वर्कर्स कॉलेज की स्थापना करना बहुत बड़ी चुनौती थी. साकची के राजस्थान विद्या मंदिर में कई बार यह प्रयास किया गया, लेकिन तत्कान टिस्को के गुंडा पार्टी के लोग निर्माण को तोड़ दिया करते थे. अंत में उन्होंने अपने निजी और कुछ चंदा के पैसे से मानगो में जमीन खरीदा और वर्कर्स कॉलेज की स्थापना कर दी. बताया जाता है कि यह कॉलेज रातों रात खड़ा कर दिया गया. इस काम में रामचंद्र सिंह और विश्वनाथ सिंह जो व्रजनंदन किशोर के साथी रहे, उन्होंने कॉलेज स्थापना में सहयोग किया था. वहीं व्रजनंदन जी के विद्यार्थी रणविजय सिंह (जिनके नाम पर आज आरवीएस एकेडमी और इंजीनियरिंग कॉलेज है) ने भी बाद में चल कर हर स्तर पर उनकी मदद की.
शिक्षा के साथ मजदूरों के मसीहा भी बने और ट्रेड यूनियन की स्थापना की
जय प्रकाश नारायण, बसावन सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस, कर्पूरी ठाकुर, कमला सिन्हा, रमानंद तिवारी व अन्य नेताओं के साथ विभिन्न आंदोलन में रहने वाले व्रजनंदन किशोर जमशेदपुर में मजदूरों की आवाज बने और कई बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया और मजदूरों को न्याय दिलाया. समाजवादी सोच के साथ वे गांधी विचारधारा को भी अपने साथ समेटे हुए थे. हिंदू मजदूर सभा से संबंधित यूनियनों को मजबूत करने के लिए डालमियानगर, राउरकेला, भिलाई, डाक मजदूरों के यूनियन कलकत्ता तक आंदोलन में गए और अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया.
शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
– भालूबासा हरिजन विद्यालय की स्थापना की और बतौर प्रधानाध्यापक सेवा दी.
– राजस्थान विद्या मंदिर विद्यालय के सचिव पद पर रहते हुए विद्यालय की पुनर्स्थापना की.
– महाराष्ट्र हितकारी मंडल विद्यालय की स्थापना सदस्य रहे.
– आरडी टाटा हाई स्कूल में शिक्षक रहे.
– टिस्को टीचर्स एसोसिएशन के मंत्री रहे और शिक्षकों के वेतन निर्धारण में अहम भूमिका निभाई.
– मजदूरों के उच्च शिक्षा के लिए देश के पहले संध्याकालीन महाविद्यालय की स्थाना की. जमशेपुर वर्कर्स कॉलेज.
– घाटशिला वर्कर्स कॉलेज (घाटशिला कॉलेज) की स्थापना की.
– जमशेदपुर टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज की स्थापना की. (अब बंद)
समाजिक क्षेत्र में योगदान
– 1964 में हुए दंगे के दौरान शांति समिति की स्थापना करने में अहम भूमिका अदा की.
– ह्यूमन पीस कमेटी के स्टैंडिंग मेंबर रहे.
– प्लानिंग फोरम का गठन कर, शहर के आसपास ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्य में योगदान दिया.
– ”नया रास्ता” नाम की साप्ताहिक पत्रिका का बतौर संपादक रहे.
– शिक्षा हर किसी तक पहुंचे इस उद्देश्य से अपने घर में युवक शिक्षार्थियों को रख कर उन्हें पढ़ाया और सुविधा दी.
राजनीति क्षेत्र में भी रहे सक्रिय
– सोशलिस्ट पार्टी का सिंहभूम जिला मंत्री.
– प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का सिंहभूम जिला मंत्री.
– सदस्य पार्लियामेंट्री कमेटी, पीएसपी
– संपूर्ण क्रांति आंदोलन के समय स्थानीय मिलानी हॉल बिस्टुपुर में जय प्रकाश नारायण के सभा की अध्यक्षता की.