- एनजीओ के माध्यम से संचालित चाइल्ड लाइन और 1098 हेल्पलाइन नंबर का अब सरकार करेगी संचालन
- 1098 हेल्पलाइन नंबर को 112 में किया जायेगा मर्ज
- अभी देश के 558 जिलों में चाइल्ड लाइन का संचालन 1500 स्वयं सेवी संस्थाएं के द्वारा किया जा रहा है
- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस ने 1996 में की थी चाइल्ड लाइन की स्थापना
- बच्चों के सुझाव पर ही 10…9…8 उलटी गिनती को बनाया गया हेल्पलाइन नंबर
स्पेशल स्टोरी. जमशेदपुर.
ट्रीन ट्रीन…… 10…9….8 से बोल रहे हैं, यहां एक बच्चा मुसीबत में है उसको मदद की जरूरत है. देश के लोग खासकर बच्चे इस 1098 से वाकिफ हो चले थे. बच्चों को मालूम था कि जो भी मासूम किसी मुसीबत में है उसकी मदद इस नंबर पर डायल करने से हो सकती है. 1098 महज एक फोन नंबर नहीं, बल्कि बच्चों को हर मुश्किल में 365 दिन चौबीस घंटे तत्काल मदद पहुंचाने वाली एक पूरी संस्था है. लेकिन अब इस नंबर पर ट्रीन ट्रीन की घंटी नहीं बजेगी, क्योंकि इस सहायता नंबर को बंद करने की योजना सरकार ने बना ली है. बच्चों के लिए विशेष तौर पर संचालित चाइल्ड लाइन के माध्यम से इस नंबर को कंट्रोल किया जाता था और चाइल्ड लाइन ही बच्चों (नाबालिक 0-18 वर्ष) को मदद पहुंचाने का काम करती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा. दरअसल 1098 को 112 में विलय किया जा रहा है. 112 जो कॉमन हेल्पलाइन नंबर है उसी में 1098 को मर्ज करने की बात कही जा रही है. जानकारी के अनुसार देश के कुछ जिलों में मर्ज कर भी लिया गया है. इसके साथ ही देश भर में गैर सरकारी संस्थाओं के जरिए संचालित चाइल्ड लाइन को भी सरकार अपने अधिन कर लेगी और उसका संचालन भी सरकार की ओर से किया जायेगा. अभी देश के 558 जिलों में चाइल्ड लाइन को विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से संचालित किया जाता है. इसमें करीब 1500 स्वयं सेवी संस्थाएं इस कार्य में जुटी हैं. 30 जून से नौ राज्यों में 1098 को 112 में मर्ज किया जा चुका है. वहीं अगस्त तक 13 राज्यों के चाइल्ड लाइन राज्य सरकार के अधिन हो जाएंगे और 1098 को 112 में मर्ज कर दिया जायेगा.
पूर्वी सिंहभूम जिला समेत राज्य के सभी चाइल्ड लाइन को अगस्त तक के लिए मिली नोटिस
पूर्वी सिंहभूम में भी 15 फरवरी 2016 से चाइल्ड लाइन और 1098 संचालित है. शहर की सामाजिक स्वयं सेवी संस्था आदर्श सेवा संस्थान इसका संचालन कर रही है. इसका कार्यालय सोनारी में है. इसके अलावा टाटानगर रेलवे स्टेशन पर भी इसकी एक यूनिट (1 मई 2018 से) संचालित है. इन वर्षों में चाइल्ड लाइन की टीम ने 1098 पर आये हजारों फोन कॉल पर बच्चों को मदद की. आंकड़ों के मुताबिक चाइल्ड लाइन के पास वर्ष 2016 से 2023 तक कुल 2396 मामले बच्चों से जुड़ी आई. वहीं रेलवे चाइल्ड लाइन ने भी टाटानगर रेलवे स्टेशन, प्लेटफॉर्म और अधिकृत क्षेत्र के तहत 2018 से अब तक 1550 बच्चों के मामले को देखा और उसका निराकरण किया. इसमें ट्रैफिकिंग जैसे गंभीर मामले भी शामिल है.
जानिए चाइल्ड लाइन और 1098 की कहानी
चाइल्डलाइन की स्थापना की कहानी भी काफी रोचक है. इसकी शुरूआत 1996 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) मुंबई के परिवार और बाल कल्याण विभाग की एक फील्ड एक्शन परियोजना के रूप में की गयी थी. इसकी स्थापना टीआईएसएस की तत्कालीन प्रोफेसर जेरू बिलिमोरिया ने की थी. बिलिमोरिया ने रेलवे स्टेशनों और मुंबई के रैन बसेरों में रहने वाले बच्चों के साथ बातचीत करना शुरू किया. धीरे-धीरे, संकटग्रस्त बच्चे रात और दिन के किसी भी समय उनसे संपर्क करने लगे. हालांकि बिलिमोरिया को जरूरतमंद बच्चों की कॉल का उत्तर देते समय अपने काम में वैधता मिली, लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि मदद की जरूरत वाले सैकड़ों बच्चों को जवाब देना उनके लिए संभव नहीं था. उन्होंने महसूस किया कि एक टेली-हेल्पलाइन सड़कों पर बच्चों द्वारा व्यक्त की गई आवश्यकता को हल कर सकती है. बीमार होने, घायल होने या किसी दूसरी तरह की समस्या होने पर बस किसी से बात करना चाहते हों तो उन्हें तत्काल सहायता की आवश्यकता हो. उन्होंने इस बात को महसूस किया कि ऐसे बच्चों की सहायता के लिए एक हेल्पलाइन फोन नंबर होना चाहिए.
बच्चों ने सुझाया उलटी गिनमी 10…9…8 और शुरू हो गया सफर
जब बच्चों को संकटकालीन फोन नंबर के विचार के बारे में बताया गया, तो उनकी वास्तविक चिंताएं थीं कि “हम दस शहरों में घूमते हैं. हम दस नंबर कैसे याद रखेंगे?”, “एक फोन कॉल करने के लिए पैसे खर्च होते हैं. हालांकि समाधान सरल लग रहा था, उस सपने को साकार करना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण यात्रा थी. अंततः 1098 को बच्चों के लिए राष्ट्रीय टोल-फ्री नंबर के रूप में स्थापित करने में तीन साल लग गए जिसके लि बच्चों द्वारा धरना प्रदर्शन भूख हड़ताल तक करना पड़ा था.
हालांकि वहां एक समस्या लग रही थी. जिसे मामूली माना जा सकता था लेकिन योजना की सफलता पर इसका व्यापक असर होगा. बात बस इतनी थी कि ‘वन-जीरो-नाइन-एट’ बच्चों को याद रखने के लिए पर्याप्त आकर्षक नहीं लग रहा था. नंबर से कोई संबंध नहीं था. फिर बच्चों की तरफ से ही एक समाधान आया. जिनमें से एक ने बिलिमोरिया को इसके बजाय इसे ‘टेन-नाइन-एट’ कहने का सुझाव दिया. यानी 10….9….8 उलटी गिनती. जो बात बड़े नहीं समझ पाये एक बच्चे ने उसका समाधान कर दिया और 1098 का सफर शुरू हुआ और बजने लगी घंटी.
1098 को जारी रखने की भी है सुगबुगाहट
इधर एक बात यह भी सामने आ रही है कि 1098 हेल्पलाइन नंबर को 112 में मर्ज तो कर दिया जायेगा, लेकिन 1098 नंबर भी काम करेगा. अगर कोई 1098 पर कॉल करता है, तो वह कॉल स्वत: 112 पर चला जायेगा. 112 आपातकालीन सेवा नंबर है. इसमें किसी भी तरह के आपातकाल की स्थिति में सहायता के लिए फोन किया जा सकता है.
नोट : कुछ जानकारियां चाइल्ड लाइन 1098 के ऑफिशियल वेबसाइट से ली गयी है.
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