- किसी भी व्यक्ति एवं राष्ट्र के विकास के लिए उच्चतर चरित्र का होना अनिवार्य है
मनोज किशोर.
समाज के सभी क्षेत्र मैं प्रायः अराजकता भ्रष्टाचार नैतिक पतन दिखता है. इंसानियत शर्मशार हो चुकी है. मानवता खत्म हो गई है. महिलाएं, बुजुर्ग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. नन्ही बच्चियां दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं.ऐसी परिस्थितियों में डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा नीति प्रासंगिक हो जाती है.
उन्होंने नैतिक ,वैदिक एवम चरित्र निर्माण की शिक्षा पर जोर दिया था. वे ऐसी शिक्षा नीति चाहते थे जिससे की चरित्र निर्माण हो सके. वे कहते थे की सत्य का दर्शन आत्मज्ञान से प्राप्त किया जा सकता है. वे विज्ञान तर्क परंपरा सभी से ऊपर आत्मज्ञान की आत्मिक शक्ति को स्थान देते थे. उनके युग में संसार की जो सामाजिक परिस्थितियां थी. उसके बारे में वे कहते थे कि भारत सहित सारे संसार के कष्टों का कारण यह है कि शिक्षा का संबंध नैतिक, चारित्रिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति से न रहकर केवल मस्तिष्क के विकास से रह गया है. जबकी चरित्र ही भाग्य एवम राष्ट्र का निर्माता है.
किसी भी व्यक्ति एवं राष्ट्र के विकास के लिए उच्चतर चरित्र का होना अनिवार्य है,. यदि चरित्र का पतन होता है, तो व्यक्ति एवं राष्ट्र का पतन हो जाता है. उनका कहना था कि समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने के लिए आदि काल की तरह वर्तमान में भी गुरु शिष्य परंपरा अनुसार शिक्षा पद्धति को विकसित करना चाहिए एवम गुरु शिष्य के बीच आदर भाव को विकसित करना चाहिए. वे शिक्षकों से आग्रह करते हुए कहते थे कि शिक्षकों को छात्रों के साथ मित्रवत व्यवहार रखते हुए उनका मार्गदर्शक बनना चाहिए. शिक्षको को छात्रों को नैतिक शिक्षा, सत्संग, ज्ञानवर्धक पुस्तक का अध्ययन करने हेतु प्रेरित करना चाहिए.
10 + 2 + 3 नीति उन्हीं की देन है. जिसे 1968 एवं 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने इसको देश में लागू किया. उन्होंने शिक्षण संस्थानों को राष्ट्र का निर्माता कहा. आज हमारे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो अंधकार और निराशा व्याप्त है. उसे शिक्षण संस्थानों एवम शिक्षक ही दूर कर सकते हैं.
“Our nation is built in its educational institutions. We have to train our youth in them.We have to impart them the tradition of the future.”
उन्होंने शिक्षक एवम शिष्य के रिश्ते को परिभाषित करते हुए कहा कि शिक्षक राष्ट्र के भावी नागरिकों का निर्माणकर्ता हैं.वे कहते हैं कि “जिस व्यक्ति की आत्मा से दूसरे व्यक्ति की आत्मा में शक्ति का संचार होता है, वह गुरु कहलाता है और जिसके आत्मा में शक्ति संचारित होती है,उसे शिष्य कहते हैं.” वे यह भी कहते थे कि बिना नारी शिक्षा के राष्ट्र का निर्माण अधूरा है.”
“There cannot be an educated people without educated women”
उन्होंने नारी के स्वभाव के अनुकूल पाठ्यक्रम को तैयार करने पर बल दिया. यथा अर्थशास्त्र,शिक्षक एवं नर्सिंग प्रशिक्षण आदि.
उनका मानना था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है. भारत के अधिकांश जनसंख्या गांव में बसती है तथा उनका आय का मुख्य स्रोत कृषि है. अतः गांव में उच्च शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए. इस हेतु ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना होना चाहिए, ताकि हमारे गांव के कृषक शिक्षित एवं स्वालंबी हो सके.
उनकी शिक्षा पद्धति का सार यह है कि” स्कूली शिक्षा समाप्त हो जाने के बाद भी सीखना समाप्त नही हो जाता बल्कि शिक्षण एक जीवन व्यापी सतत प्रक्रिया है.”
नोट : इस लेख के लेखक मनोज किशोर इतिहास विषय से एमए हैं. कॉलेज में सेवा देने के साथ अपनी लेखनी के माध्यम से ज्वलंत मुद्दों पर लेख, कविता लिखने की रुचि से अपनी बातों को बखूबी रखते हैं.