- साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं वरन सतत दिशा निर्देशन भी है : डॉ झा
जमशेदपुर.
जमशेदपुर के करनडीह स्थित लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के स्नातक उर्दू विभाग की ओर से विभागीय व्याख्यान का का आयोजन किया गया. व्याख्यान का विषय “झारखंड के अहम अफसाना निगार” था. व्याख्यानमाला के इस चौथी कड़ी में व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य अशोक कुमार झा ने कहा कि अफसाना फारसी मूल का एक शब्द है जिसका अनुवाद कहानी, कथा, लघु कथा अन्य के रूप में किया जाता है. उर्दू साहित्य के लिए इस शब्द का प्रयोग अक्सर अर्थ के विभिन्न रंगों को बोलने के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं वरन सतत दिशा निर्देशन भी है. उर्दू अदब की भाषा है. उन्होंने कहा कि प्रेमचंद उर्दू जबान व अदब के प्रेमी व आशिक थे. उनके अफसानों में ये चीजें साफ झलकती थी. उनके अफसानों में राजनैतिक सामाजिक चेतना विद्यमान थी, जिसमें धार्मिक सहिष्णुता थी और उसमें मुल्क और खास तौर पर गंगा-जमुनी तहजीब की अमिट छाप दिखाई पड़ती थी.
मुख्य वक्ता डॉ अफसर काजमी (सहायक प्राध्यापक करीम सिटी कॉलेज, जमशेदपुर) ने झारखंड के अहम अफसाना निगार के संदर्भ में कहा कि प्रेमचंद उर्दू के पहले अफसाना निगार हैं जिन्हें उर्दू अफसानों का बाबा आदम कहा जाता है. जिसे हम अफसाना कहते हैं इसकी उम्र 100 वर्ष के लगभग है. इस 100 वर्ष के उम्र में अफसानों ने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन प्रेमचंद ने अपने 30 – 35 वर्षों में कफन जैसा शाहकार अफसाना लिखा. झारखंड के अहम अफसाना निगार में ग्यास अहमद गद्दी, जकी अनवर, गुरु वचन सिंह, शीन अख्तर, अख्तर यूसुफ, इलियास अहमद गद्दी, कहकशा परवीन, नियाज अख्तर और अख्तर आजाद के अफसानों पर भरपूर रोशनी डाली.
व्याख्यान श्रंखला की संयोजक व उर्दू विभाग की प्रोफेसर डॉ शबनम परवीन ने मंच का संचालन किया और कहा कि प्रोफेसर मुहम्मद मुस्लिम ने झारखंड में उर्दू अफसाने का आगाज 1927 ई. से किया. इसके बाद से छोटानागपुर में उर्दू अफसाना निगारी की रवायत चल पड़ी. स्वागत भाषण निमी परवीन और धन्यवाद ज्ञापन सेमेस्टर पांच की छात्रा नाजिश अर्शी ने दिया. इस मौके पर डॉ प्रशांत, प्रो मोहन साहू, डॉ सुधीर सुमन, प्रो प्रमिला किस्कू, डॉ नूपुर, प्रो सलोनी रंजन और छात्र-छात्राएं उपस्थित थे.