- जानिए टाटा वर्कर्स यूनियन का गौरवशाली इतिहास
- 5 मार्च 1920 को जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन के नाम पर हुआ था गठित
- सुभाष चंद्र बोस जैसे स्वतंत्रता सेनानी इसके रह चुके हैं अध्यक्ष
शाहनवाज आलम.
भारत में औद्योगिक क्रांति को जन्म देने वाले टाटा स्टील में प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच काफी मधुर संबंध हैं. प्रबंधन की कार्यप्रणाली से और कर्मचारियों के प्रति हितकारी योजनाओं को लेकर यहां काम करने वाले कर्मचारियों में असंतोष का भाव नहीं देखने को मिलता है. 117 वर्ष पुरानी और देश के पहले स्टील कारखाने में कभी मजदूर आंदोलन नहीं हुआ, ऐसा नहीं है. कंपनी अपने स्थापना के 12-13 वर्ष यानी बालावस्था में ही थी कि मजदूरों ने अपनी अलग अलग मांगों को लेकर आंदोलन कर दिया था. इस आंदोलन ने टाटा स्टील में मजदूर संगठन की जरूरत को जन्म दिया और जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन यानी टाटा वर्कर्स यूनियन के गठन को सुनिश्चित किया. टाटा स्टील की स्थापना का इतिहास जितना रोमांचक, रोचक और एतिहासिक हैं उतना ही गौरवशाली इतिहास टाटा वर्कर्स यूनियन का भी है. पांच मार्च 1920 में गठित जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन के नाम से गठित मजदूर यूनियन जिसे आज टाटा वर्कर्स यूनियन के नाम से जाना जाता है, वह इस वर्ष अपने स्थापना की 105वीं वर्षगांठ मना रहा है. आइए आज हम जानते हैं यूनियन के गठन और उसके गौरवशाली इतिहास के बारे में. यह लेख टाटा वर्कर्स यूनियन के वर्तमान उपाध्यक्ष शाहनाज आलम ने विशेष आग्रह पर लिखा है.
शाहनवाज आलम टाटा वर्कर्स यूनियन में पिछले 28 वर्षों से सक्रिय हैं और लगातार पांचवीं बार उपाध्यक्ष निर्वाचित होने वाले नेतृत्वकर्ता है. मजदूर वर्ग से आने वाले शाहनवाज अपने कर्मचारियों के लिए आदर्श भी हैं कि वे टाटा स्टील में काम करते हुए अरका जैन यूनिवर्सिटी से लेबर रिलेशन में पीएचडी स्कॉलर भी हैं.
भारत के सपनों का स्टील प्लांट साकची नामक गांव में स्थापित किया गया था. यह स्थान भौगोलिक रूप से जंगल, जंगली जानवर, नदी और आदिवासी लोगों से घिरा हुआ था. आदिवासियों ने हाल ही में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम का समापन किया था. परिणामस्वरूप 1907 में कुछ सरकारी सर्वेक्षणों से पता चला कि यह स्थान श्रम बाजार के लिए उपयुक्त नहीं है. टाटा स्टील कंपनी की स्थापना 27 फरवरी 1908 को जमशेतजी टाटा के निर्देश और पहल और उनके बड़े बेटे दोराबजी टाटा और चचेरे भाई शापूरजी शक्तालवाला की सक्रिय भागीदारी पर की गई थी. पहला स्टील 16 फरवरी 1912 को तैयार किया गया था. देश के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर छत्तीसगढ़, शाहाबाद और बिहार के सारण जिलों से कई कर्मचारी संयंत्र में काम करने आए थे. 1912 और 1918 के बीच कंपनी में लगभग 10,000 कर्मचारी कार्यरत थे, और 1924 और 1934 के बीच कर्मचारियों की संख्या लगभग 23,000 हो चुकी थी.
1920 में मजदूर आंदोलन ने यूनियन को जन्म दिया
टाटा वर्कर्स यूनियन के गठन की पृष्ठभूमि 1920 से मिलती है. जब अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के गठन के साथ, टिस्को (टाटा स्टील) के श्रमिकों में विदेशी प्रबंधन और उसके कामकाज के तरीके के प्रति असंतोष बढ़ रहा था. उच्च प्रबंधन अधिकारी और ज्यादातर विदेश से आए वरिष्ठ पर्यवेक्षक हमेशा कार्य क्षेत्र में श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार करते थे, यह एक आम बात थी. उस समय मजदूर की कमाई प्रतिदिन 4 से 5 आने थी. उस समय विश्व युद्ध भी छिड़ गया था, जिसके बाद आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई. श्रमिकों को गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. अमेरिकी टीडबल्यू टुटविलर 1916 से 1925 तक महाप्रबंधक टुटविलर ने “उद्योग के भीतर लोकतंत्र की आधुनिक अवधारणाओं के बारे में कोई विरोध बर्दाश्त नहीं की थी. उनके लिए, श्रमिकों को काम पर रखने और निकालने का अधिकार एक ईश्वर प्रदत्त अधिकार था”.
1920 के दशक के अंत में स्थानीय सरकार ने 29,000 की कार्यबल की सूचना दी. ठेकेदारों के कुलियों की संख्या 4000 से 8000 तक थी. अधिकांश वरिष्ठ अधिकारीअमेरिकी थे और 1923 से 1927 तक, प्रति व्यक्ति वार्षिक उत्पादन 117 से बढ़कर 218 टन हो गया वहीं दुर्घटना दर 3.98 प्रति सौ श्रमिक से बढ़ कर 7.45 हो गई.
जमशेदपुर संयंत्र में पहला विरोध खड़गपुर रेलवे वर्कशॉप से भर्ती किए गए कुछ अर्ध कुशल श्रमिकों द्वारा शुरू किया गया था. वे संगठित विरोध से परिचित थे क्योंकि हाल ही में खड़गपुर वर्कशॉप में हड़ताल हुई थी. 24 फरवरी 1920 को सुबह-सुबह ब्लैक स्मिथ शॉप (भट्ठी) और मशीन शॉप के कुछ कर्मचारी बिना किसी पूर्व विचार-विमर्श के अचानक काम बंद कर शॉपफ्लोर से बाहर आ गए और प्रबंधन के खिलाफ नारे लगाने लगे. कुछ घंटों के बाद अधिकांश कर्मचारी शॉपफ्लोर छोड़ कर विरोध में शामिल हो गए.
आंदोलन हुआ, लेकिन नेतृत्व की कमी ने, बड़े नेताओं को किया आमंत्रित
1911 में संयंत्र के चालू होने के बाद से टिस्को श्रमिकों का यह पहला विरोध प्रदर्शन था. श्रमिकों ने दुर्घटना मुआवजे, अधीनस्थों के साथ बेहतर व्यवहार, एक सेवा संहिता और हड़ताल-वेतन की मांग की. सरकारी अधिकारी सक्रिय मध्यस्थ थे. उनके बीच किसी औपचारिक संगठन के अभाव में, हड़ताल का नेतृत्व मुख्य रूप से फोरमैन, प्रशिक्षुओं और कुछ समर्पित श्रमिकों ने किया. उसी समय भारत में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक विरोध प्रदर्शन चल रहा था. कलकता (कोलकाता) विरोध गतिविधि का एक शक्तिशाली केंद्र था, यह शहर जमशेदपुर के निकट था. टिस्को प्लांट में सबसे आगे रहने वाले प्रदर्शनकारी को लगा कि विरोध का नेतृत्व करने के लिए कुछ अनुभवी और प्रभावी नेतृत्व की आवश्यकता है, इसलिए उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल राष्ट्रीय नेताओं से नेतृत्व और मार्गदर्शन लेने का फैसला किया. वे थे सुरेन हलदर, पद्मराज जैन, निर्मल चटर्जी. ये राष्ट्रीय नेता पूर्वी क्षेत्र में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय औद्योगिक श्रमिक बल को संगठित करने में रुचि रखते थे. उस समय तक, राष्ट्रवादी आंदोलन के कई प्रतिष्ठित कांग्रेस नेता भी सक्रिय रूप से देश के श्रमिक आंदोलन से जुड़ चुके थे. टाटा फैक्ट्री के कर्मचारी अब मदद के लिए ब्योमकेश चक्रवर्ती के पास पहुंचे. उन्होंने महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय और सीआर दास को भी सूचित किया. ब्योमकेश चक्रवर्ती ने अपने करीबी दोस्त सुरेंद्र नाथ हलदर, जो कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक प्रसिद्ध बैरिस्टर थे, को श्रमिकों की मदद के लिए भेजा.
25 फरवरी को एक आम सभा का आयोजन किया गया जिसमें 10,000 से अधिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया. जिले के तत्कालीन उपायुक्त जेई स्कॉट ने सरकारी प्रतिनिधि के रूप में बैठक को संबोधित किया. श्रमिकों की व्यापक प्रतिक्रिया को देखते हुए, मध्य और निचले स्तर के प्रबंधन ने श्रमिकों की मांगों पर ध्यान देना शुरू कर दिया, लेकिन हड़ताली श्रमिकों के नेता अब इस बात पर अड़े थे कि वे केवल संयंत्र के महाप्रबंधक टी डब्ल्यू टुटविलर से ही बातचीत करेंगे. उन्होंने हड़ताल की सफलता सुनिश्चित करने के लिए धन जुटाना भी शुरू कर दिया. बदले में प्रबंधन कंपनी की संपत्ति की सुरक्षा और कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस तैनात करने में कामयाब रहा. इस दमन के बावजूद मजदूरों की बढ़ती संख्या संघर्ष में भाग लेने लगी.
26 फरवरी को सुरेंद्र नाथ हलदर अपने साथियों के साथ जमशेदपुर पहुंचे. अगले दिन, उन्होंने स्कॉट से मिलने से पहले कार्यकर्ताओं की एक बड़ी बैठक को संबोधित किया. उसी दिन टुटविलर जमशेदपुर पहुंच गये. बाद में एक त्रिपक्षीय बैठक बुलाई गई, लेकिन किसी भी तरह से कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया जा सका.
28 फरवरी को, प्रशासन ने फैक्ट्री परिसर के पास और शहर के संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त सशस्त्र बल तैनात किए. इससे कार्यकर्ताओं का आक्रोश और बढ़ गया. उस दिन, एक और त्रिपक्षीय बैठक बुलाई गई, जिसमें प्रबंधन ने उन रियायतों के बारे में बात की जो वह देने को तैयार थे. हालांकि, हलदर ने एक लिखित बयान पर जोर दिया, जिसे प्रबंधन ने अस्वीकार कर दिया. इस प्रकार, वार्ता फिर विफल हो गई.
महात्मा गांधी को हस्तक्षेप करने के लिए भेजा गया टेलीग्राम
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, हलदर ने महात्मा गांधी को एक टेलीग्राम भेजकर अनुरोध किया कि वह हस्तक्षेप करें. गांधीजी ने लाला लाजपत राय और शौकत अली को जमशेदपुर भेजा. इन नेताओं ने भी प्रबंधन से बात की लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. इस बीच, स्कॉट ने हलदर से मांगों का एक नया चार्टर तैयार करने का अनुरोध किया. 1 मार्च को नया चार्टर बंबई (अभी मुंबई) में निदेशक मंडल को अग्रेषित करने के लिए टुटविलर को प्रस्तुत किया गया. 3 मार्च को प्रबंधन, स्थानीय प्रशासन और पुलिस अधिकारियों ने शहर की अस्थिर स्थिति पर चर्चा के लिए गुप्त बैठकें की.
5 मार्च को पुनः एक त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की गई, जिसमें ब्योमकेश चक्रवर्ती ने सूत्रधार की भूमिका निभाई. उसी दिन दोपहर में मजदूरों की एक आम बैठक बुलाई गई जिसमें उन्होंने मजदूरों को प्रबंधन के अड़ियल रुख से अवगत कराया. उन्होंने अपने मुद्दे को संगठित और प्रभावी तरीके से उठाने के लिए एक ट्रेड यूनियन की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा. इस प्रकार 5 मार्च को 25,000 से अधिक लोगों की करतल ध्वनि के बीच जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन का गठन किया गया.
20 मार्च को सर दोराबजी टाटा ने वेतन वृद्धि और छुट्टी स्वीकार कर ली और जमशेदपुर लेबर यूनियन को मान्यता दे दी. 20 मार्च 1920 को प्रबंधन के साथ जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन (टाटा वर्कर्स यूनियन) का समझौता हुआ जिसमें भारत में किसी भी उद्योग में वेतन, ग्रेच्युटी, कार्य स्थायी आदेश के साथ छुट्टी की व्यवस्था पहली बार की गई. प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी की अवधारणा के अग्रदूत के रूप में श्रम और प्रबंधन के प्रतिनिधियों के साथ एक सलाहकार संयुक्त समिति का गठन किया गया था, जिसे बाद के वर्षों में टाटा स्टील में एक उल्लेखनीय सफलता मिली.
1922 में एक गंभीर झटका लगा जब यूनियन ने सेवा की सुरक्षा, बेहतर सेवा शर्तों आदि जैसी कुछ बुनियादी मांगों को हासिल करने के लिए हड़ताल शुरू की, हड़ताल विफल रहा. प्रबंधन ने तत्काल अपनी मान्यता वापस ले ली और यूनियन के महासचिव को सेवा से बर्खास्त कर दिया. जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन ने जल्द ही सीएफ एंड्रयूज जैसे अखिल भारतीय नेताओं को आकर्षित किया. एंड्रयूज, सीआर दास, और मोतीलाल नेहरू पहुंच गए. गतिरोध को तोड़ने के लिए सीआर दास की अध्यक्षता में एक सुलह समिति का गठन किया गया, यह असफल हो गया.
दूसरी हड़ताल में महात्मा गांधी को आना पड़ा
एंड्रयूज ने महात्मा गांधी को हस्तक्षेप करने के लिए राजी किया. 1925 में गांधीजी ने जमशेदपुर का दौरा किया और उनके अच्छे कार्यालयों के माध्यम से एक समझौता हुआ. एसोसिएशन की मान्यता बहाल कर दी गई और उसके महासचिव को बहाल कर दिया गया. जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन से टाटा वर्कर्स यूनियन तक के सफर में इसके अध्यक्ष पद पर महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी सेवा दी है. इसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस, प्रो अब्दुल बारी जैसे नाम प्रमुख हैं.
यूनियन के अध्यक्ष, जाने इनके बारे में
एसएन हलदर 1920-24 तक अध्यक्ष रहे, वह कोलकाता उच्च न्यायालय के बैरिस्टर थे.
सीएफ एंड्रयूज 1925 से 1928 तक अध्यक्ष रहे. उन्हें व्यापक रूप से गांधीजी के सबसे करीबी दोस्त के रूप में जाना जाता था.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1928 से 1936 तक अध्यक्ष रहे. अंतिम हड़ताल 12 सितंबर 1928 में नेताजी के कार्यकाल में हुई थी. 96 साल हो गए 1928 के बाद आज तक टाटा स्टील में हड़ताल नहीं हुआ.
1936 में प्रो अब्दुल बारी ने संभाली कमान, 1937 में बदला नाम
बिहार के साहाबाद में 1892 में जन्मे प्रोफेसर अब्दुल बारी 1936 में जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए. अध्यक्ष बनने के दूसरे साल ही उन्होंने जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन का नाम बदल कर टाटा वर्कर्स यूनियन कर दिया. वे 1947 तक अध्यक्ष रहे. प्रो बारी भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था. स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी गहन भागीदारी के बावजूद, भारत की आजादी से ठीक पहले उनका निधन हो गया. लेकिन उन्होंने सुलह के एक नए युग की शुरुआत की थी.
माइकल जॉन 1947 से 1977 तक अध्यक्ष रहे. 1956 में उनके नेतृत्व में, टिस्को प्रबंधन और टाटा वर्कर्स यूनियन के साथ दो ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसने यूनियन को टाटा स्टील के प्रबंधन के साथ एकमात्र नेगोशिएशन एजेंट के रूप में सशक्त बनाया और संयुक्त परामर्श प्रणाली को जन्म दिया. पिछले 70 वर्षों की अवधि में, टीडब्ल्यूयू ने संयुक्त परामर्श के पथ पर एक लंबा सफर तय किया है.
वीजी गोपाल, जिसे गोपाल बाबू के नाम से भी लोग जानते हैं. वे 1977 से 1993 तक अध्यक्ष रहे. प्रोफेसर बारी, जिन्होंने टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष और माइकल जॉन के महासचिव के रूप में नेतृत्व किया, युवा गोपाल में ऐसे गुण मौजूद थे जो ट्रेड यूनियनवाद के लिए आदर्श रूप से अनुकूल थे. इस प्रकार वीजी गोपाल को 1937 में शॉप स्टीवर्ड के रूप में शामिल किया गया. जैसे ही स्वतंत्रता संग्राम ने जोर पकड़ा, श्री गोपाल 1942 के आंदोलन में शामिल हो गए. भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान वे एक वर्ष तक पटना कैम्प जेल में कैद रहे. रिहा होने के बाद, उन्होंने खुद को ट्रेड यूनियन गतिविधियों के लिए समर्पित कर दिया. 1943 में उन्हें सहायक सचिव चुना गया और बाद में अब्दुल बारी की मृत्यु (28 मार्च, 1947) के बाद, 1947 में महासचिव के पद पर आसीन हुए. वह 1977 में यूनियन के अध्यक्ष चुने गए. श्री गोपाल 1952 से 1956 तक राज्य सभा सदस्य भी थे. वह 1957 से 1962 तक बिहार विधानसभा के सदस्य भी रहे.
एसके बेंजामिन 1993 से 2002 तक अध्यक्ष रहे. टाटा वर्कर्स यूनियन के 7वें अध्यक्ष एसके बेंजामिन का जन्म 12 जनवरी, 1928 को हुआ था. वह दर्शनशास्त्र में एमए थे. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया और 1949 में ट्रेड यूनियन गतिविधियों में शामिल हो गए. शुरुआत में उन्होंने टाटा वर्कर्स यूनियन में इंस्पेक्टर के रूप में काम किया और फिर 1956 में सहायक सचिव के रूप में चुने गए. 1977 में संयुक्त सचिव और 1984 में महासचिव के रूप में चुने गए. वीजी गोपाल की मृत्यु के बाद, उन्हें 1993 में संघ के अध्यक्ष के रूप में चुना गया.
आरबीबीसिंह 2002 से 2006 तक टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष थे. यूनियन के 8वें अध्यक्ष आरबीबी सिंह का जन्म 20 जून 1947 को बिहार के रोहतास जिले के जयपुर गांव में हुआ था. वह 1965 में जमशेदपुर में टाटा स्टील ट्रेड अपरेंटिस में शामिल हुए और वहीं से अपने मजदूर यूनियन की शुरूआत कर अध्यक्ष के पद तक पहुंचे.
रघुनाथ पांडे 2006 से 2012 तक टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष रहे. संघ के 9वें अध्यक्ष रघुनाथ पांडे का जन्म 1 जुलाई 1955 को बिहार के भोजपुर जिले के तरारी गांव में हुआ था. वह 1974 में कंपनी के सुरक्षा विभाग में शामिल हुए और पहली बार उन्हें 1985 में सुरक्षा विभाग में कार्यकारी समिति के सदस्य के रूप में चुना गया.
पीएन सिंह 2012 से 2015 तक यूनियन के अध्यक्ष रहे.टाटा वर्कर्स यूनियन के 10वें अध्यक्ष पीएन सिंह का जन्म 12 सितंबर 1953 को हुआ था. श्री सिंह ने भागलपुर विश्वविद्यालय से बीएससी और रांची विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में एमएससी की पढ़ाई की है. वह 1974 में ऑपरेटिंस ट्रेनी के रूप में टाटा स्टील में शामिल हुए थे. वह 1984 में अपने विभाग से पहली बार यूनियन की सुपर एंड टेक यूनिट में कार्यकारी समिति के सदस्य के रूप में चुने गए. सेनाविवृति के बाद भी वे यूनियन की राजनीति में आज भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं.
आर रवि प्रसाद 2015 से 2021 तक टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष रहे. टाटा वर्कर्स यूनियन के 11वें अध्यक्ष आर रवि प्रसाद का जन्म 3 जनवरी 1961 को हुआ था. उन्होंने जमशेदपुर वर्कर्स कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. वह एलडी-2 विभाग में शामिल हुए जहां उन्होंने 32 वर्षों तक सेवा की. वह 1997 में कार्यकारी समिति के सदस्य के रूप में टाटा वर्कर्स यूनियन में शामिल हुए.
संजीव चौधरी ‘टुन्नू’ 2021 से यूनियन अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व कर रहे हैं. संजीव चौधरी, जिन्हें उनके उपनाम टुन्नू चौधरी के नाम से भी जाना जाता है, ने बिना किसी विरोध का सामना किए अध्यक्ष के रूप में अपना लगातार दूसरा कार्यकाल हासिल किया है और वर्तमान में वे अध्यक्ष के तौर यूनियन में अपनी सेवा दे रहे हैं.