- देश के बंटवारा के समय बंगाल के दलितों के सबसे बड़े नेता थे जोगेंद्र नाथ मंडल
- मो. अली जिन्ना ने दिया धोखा, लौट आये भारत
मनोज किशोर.
यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान के प्रमुख संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना है. किंतु बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि पाकिस्तान के निर्माण में एक हिंदू दलित नेता का भी महत्वपूर्ण योगदान था. जिनके सहयोग के बिना पाकिस्तान का निर्माण में अड़चन आ जाता तथा मोहम्मद जिन्ना का पाकिस्तान निर्माण का सपना अधूरा रह जाता. उस शख्सियत का नाम था जोगेंद्र नाथ मंडल.
देश के बंटवारा के समय बंगाल के दलितों के सबसे बड़े नेता थे. वे संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर के अत्यंत करीबी थे तथा उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित भी थे. वे बंगाल के दलित एवं मुसलमान के बीच समान रूप से लोकप्रिय थे. वे हिंदू दलित एवं मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे.वे अत्यन्त विद्वान एवं कानून के जबर्दस्त जानकर थे.
जनसंख्या के आधार पर तथा अन्य तात्कालिक कारणों से पाकिस्तान बटवारा में जब दिक्कत आने लगा. तब उन्होंने जोगेंद्रनाथ मंडल पर डोरा डाला. जिन्ना ने उन्हें आश्वस्त किया कि पाकिस्तान के दलितों के हितों की पाकिस्तान में मैं रक्षा करूंगा. सभी हिन्दुओं विशेषकर दलितों को यथोचित सम्मान प्रदान करूंगा. मो. जिन्ना की बातों में आकर अपने दलित समुदाय के सुखद भविष्य का सपना संजोए जोगेंद्र नाथ मंडल ने रातों-रात अपने समुदाय के डेढ़ – दो लाख दलितों को साथ लेकर पाकिस्तान चले गए.
शुरुआत में उन्हें जिन्ना ने अपने वादे के अनुरूप काफी सम्मान दिया जोगेंद्र नाथ मंडल को पाकिस्तान का पहला श्रम एवं कानून मंत्री बनाया. पाकिस्तान के संविधान सभा के पहले सत्र की अध्यक्षता की जिम्मेदारी उन्हें दिया. पाकिस्तान के संविधान निर्माण की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी उन्हें दिया.
किन्तु पाकिस्तान निर्माण के अगले दो-तीन वर्ष में ही उनका पाकिस्तान से मोह भंग हो गया. चारों तरफ पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार होने लगा. हिंदुओं के मंदिरों, सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाया जाने लगा. जबरदस्ती हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन किया जानें लगा. उन्होंने इस संबंध में मोहम्मद जिन्ना से बात किया. किन्तु जिन्ना से उन्हें कोई मदद नहीं मिला. खुद पाकिस्तान का श्रम एवं कानून मंत्री होने के बावजूद भी हिंदू की रक्षा करने में असफल रहे. इससे वे हताश निराश हो गए तथा अपने फैसला पर उन्हें अफसोस होने लगा. खुद को वे ठगा हुआ महसूस करने लगे.
दलित मुस्लिम एकता का टूटा सपना लेकर मंडल चुपचाप भारत आ गए. भारत मे गुमनामी में 5 अक्टूबर 1968 को पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना के बानगांव में उनका देहांत हो गया.उनके एक गलत निर्णय के कारण उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिये था वह उन्हें दोनों देशों में से किसी भी देश में नहीं मिला.
इस लेख लेखक मनोज किशोर (एमए हिस्ट्री), कोल्हान विश्वविद्यालय अंतर्गत चांडिल कॉलेज में कार्यरत है.