पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट.
प्रशांत जयवर्द्धन, रांची.
प्रौद्योगिकी का नया अवतार एआई यानी आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस ने मानव जीवन में दखल देना आरंभ कर दिया है. इसका प्रभाव दिखने लगा है. सब कुछ चुटकियों में हो जाना और पल भर में सवालाें के जवाब से लेकर तकनीकी काम को आसान बना देना एक सकारात्मक पहलू को दर्शा रहा है. लेकिन कई देशों में एआई के कारण नौकरियों के खतरा में आने की बातें भी सामने आने लगी है. दुनिया भर में अलग अलग देशों के साथ भारत में अब शिक्षा प्रणाली में कई तरह के बदलाव किए जा रहे हैं. शिक्षा अब कौशल आधारित हो, इस पर जोर दिया जा रहा है. प्राद्योगिकी के जमाने में कौशल योग्य व्यक्ति की मांग बढ़ रही है. अब इसी बीच एआई का प्रवेश जो कौशल के साथ कौशलयुक्त कार्य को और भी आसान बना रहा है. शिक्षा क्षेत्र में हो रहे तेजी से बदलाव भविष्य की चिंता भी बढ़ा रही है, जब सब कुछ तकनीक और एआई पर निर्भर होगा, तो क्या शिक्षकों को पढ़ाने के लिए छात्र मिलेंगे? इस विषय पर पढ़िए शिक्षाविद् प्रशांत जयवर्द्धन की यह पूरी रिपोर्ट.
कुछ शिक्षकों को चिंता है कि निकट भविष्य में पढ़ाने के लिए कोई छात्र नहीं होंगे, क्योंकि प्रौद्योगिकी हमारे छात्रों को पढ़ाने पर कब्जा कर सकती है. स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक तकनीक का दखल जिस प्रकार बढ़ा है उससे यह चिंता वाजिब है. मीडिया में एआई, रोबोटिक्स, चैट जीपीटी जैसे आलेखों ने तो एक नयी तस्वीह ही पेश कर दी है. सरकार और शिक्षा विभाग भी इन प्रयासों को लेकर गंभीर है.
शिक्षा मंत्रालय का लक्ष्य 2030 तक 50 प्रतिशत स्कूली छात्रों को विभिन्न कौशल में प्रशिक्षण करना है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद अब विदेशी विश्वविद्यालय देश में अपने केंद्र खोलने को इक्छुक हैं. भारतीय शिक्षा ई लर्निंग, चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व निर्माण, सीखो कमाओ और स्टार्टअप्स के बाद नवाचार की तरफ बढ़ चुकी है. पिछले दो दशकों से भारतीय शिक्षा प्रणाली में सर्जिकल स्ट्राइक और पुनर्निर्माण की मांग हो रही थी. नई शिक्षा नीति के आने से यह मांग भी पूरी हो चुकी है.
भारतीय शिक्षा 2035
भारत विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है. करोड़ों की संख्या में युवा कार्य बल दक्षता प्राप्त कर अवसरों की तलाश में हैं. वह तेजी से तकनीकि परिवर्तन के साथ ताल मेल बैठा कर बदलते माहौल में फिट होना चाहता है. इतनी बड़ी जनसंख्या और कार्य बल को शिक्षा के जरिये ही अवसर और रोजगार से जोड़ा जा सकता है. कौशल से लैस युवाओं को बेहतर जॉब के साथ बेहतर वेतनमान की भी आशा है. भारत शिक्षा के इस बड़े डिमांड को पूरा करने करने के लिए परदेशी देशों के साथ सहयोग का आकांक्षी है. ऑस्ट्रेलिया भारत का एक ऐसा ही मित्र राष्ट्र साबित हो सकता है. झारखंड जैसे राज्य में विदेश की पांच यूनिवर्सिटी अपना कैंपस खोलने की इक्षा व्यक्त कर चुके है. स्टैंडफोर्ड, ब्रिटिश कोलंबिया, मैकगिल, क्यूबेक और मांट्रियल यूनिवर्सिटी राज्य में अपना कैंपस खोलना चाहती है. उन्हें बस फॉरेन एजुकेशन बिल के पारित होने का इतजार है जो पिछले दो वर्षो से लंबित पड़ा हुआ है. इसके बाद सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रास्ता साफ़ हो जायेगा. राज्य सरकार पहले से ही अनुसूचित जनजाति के प्रतिभावान स्टूडेंट्स को विदेश के विश्वविद्यालयों में सरकारी खर्च पर उच्च शिक्षा देने के मौके दे रही है.
2035 में भारतीय शिक्षा का स्वरुप भी पूरी तरह बदला हुआ होगा. विद्यालय कौशल निर्माण, चरित्र निर्माण, नवाचार और तकनीकी दक्षता के प्रारंभिक केंद्र होंगे जिनमें पढ़ने वाले बच्चे में भविष्य की चुनौतियों से निपटने की क्षमता होगी और भारतीय संस्कृति का गर्व भी.
विश्वविद्यालय अंतःविषयक शिक्षा, उदार शिक्षा और समाज की जटिल चुनौतियों से लड़ने वाले अध्ययन केंद्र विशेषज्ञ शिक्षकों के मार्गदर्शन में छात्र कार्य करेंगे. तकनीक का दखल, सामाजिक विविधता और आभासी माध्यम के कारण विश्वविद्यालयों का दायित्व होगा प्रांगण में आने वाले छात्रों को स्वागत योग्य समवेशी वातावरण प्रदान करे. पाठ्यक्रम के साथ सीखने का माहौल सभी छात्रों के अनुभव और सीखने के दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करे. परिणाम आधारित शिक्षा एक अहम् केंद्र बिंदु रहेगी जिससे विश्वविद्यालय के पाठ्क्रम और शैक्षणिक वातावरण का आंकलन संभव होगा. विश्वविद्यालयी शिक्षा अधिक लचीलेपन, अंतःविषय , वास्तविक दुनिया के अनुभव, उद्योग सहयोग और तकनीक, विविधता, समानता और समावेशन से चिह्नित होगी.