शोभा देवी, जमशेदपुर.
नारी हूं मैं नारी
नारी हूं मैं नारी
नहीं मैं अबला बेचारी
कल तक भी मैं थी सत्ती सावित्री,
आज बन गई है भोग की साम्रगी!
इसी समाज ने बदली है मेरी सुरत,
इसी समाज ने बदली है मेरी सीरत
नारी हूं मैं नारी,
नहीं में अबला बेचारी अब ना डरूंगी,
अब ना रुकूंगी, इस समाज से अब मैं लड़ूंगी,
जब तक अपनी खोई गरिमा को
पूर्ण प्राप्त मैं ना कर लूगी.
नारी हूं मैं नारी,
नहीं मैं अबला बेचारी.
नोट : इस कविता की लेखिका शोभा देवी जमशेदपुर को-आपरेटिव कॉलेज में सहायक प्रध्यापिका के पद पर कार्यरत है.