- एलबीएसएम कॉलेज में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का शुभारंभ
- सर्वश्रेष्ठ आलेख प्रस्तुति के लिए श्वेता श्रीवास्तव, अंशु श्रीवास्तव एवं पंकज कुमार को किया गया पुरस्कृत
जमशेदपुर.
एलबीएसएम कॉलेज में ‘ग्लोबल इश्यूज इन मल्टी डिसिप्लिनरी एकेडेमिक रिसर्च’ नामक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आरंभ हुआ. कॉलेज के बहुउद्देश्यीय सभागार में आयोजित उद्घाटन सत्र में कॉलेज के प्राचार्य प्रो डॉ. अशोक कुमार झा ने आमंत्रित अतिथियों और शोेधार्थियों का स्वागत करते हुए लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि जब नई शिक्षा नीति के अंतर्गत पाठ्यक्रम में परिवर्तन हुए तो कोल्हान विश्वविद्यालय में एलबीएसएम कॉलेज पहला ऐसा महाविद्यालय था जिसने नए पाठ्यक्रम के अनुसार व्याख्यानों की शृंखला आयोजित की, जिनके पुस्तकाकार प्रकाशन की योजना भी है.
सेमिनार के मुख्य अतिथि कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति हरि प्रसाद केशरी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके, उनके लिखित संदेश को डॉ अशोक कुमार झा ने कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति हरि प्रसाद केशरी के लिखित संदेश को पढ़ा, जिसमें उन्होंने कहा है कि परिवर्तन के साथ समीक्षा और मूल्यांकन का दायित्व शिक्षकों को वहन करना चाहिए. नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के दौरान आने वाले सभी दायित्वों का निर्वहन आवश्यक है. उन्होंने इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कई अनुसंधानात्मक प्रयासों को पूरा करने पर जोर दिया. साथ ही शिक्षण के क्षेत्र में डिजिटल माध्यमों के उपयोग और उसके लाभ की चर्चा की तथा सतत अन्वेषणशील रहने के साथ-साथ उच्च तकनीकी से सहयोग प्राप्त करने का सुझाव दिया.
मुख्य अतिथि कोल्हान विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और उड़ीसा के राज्यपाल के एकेडमिक सलाहकार डॉ शुक्ला मोहंती ने कहा कि इस तरह के सेमिनार राष्ट्रीय विकास का हिस्सा होते हैं. उन्होंने शिक्षा जगत में तकनीकी के उपयोग और उसमें तीव्र गति से हो रहे परिवर्तन की चर्चा की. उन्होंने बताया कि ग्लोबल समस्याओं खासकर जलवायु परिवर्तन, वैश्विक उष्मण, समाजिक विषमता और असमानता, प्रवास, पर्यावरणीय समस्यायों के समाधान में सूचना प्रौद्यिगिकी बहुत उपयोगी हो सकती है. उन्होंने वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए मल्टी डिसीप्लिनरी रिसर्च की जरूरत पर जोर देते हुए बताया कि ज्ञान के सारे क्षेत्र परस्पर संबद्ध हैं. कोविड ने भी मल्टी डिसीप्लिनरी रिसर्च की जरूरत को सामने लाया है. उन्होंने कहा कि सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा है. हमें साक्षर नहीं, बल्कि शिक्षित होना है. हर तरह की गैरबराबरी को दूर करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर हमें एकेडेमिक रिफार्म करना चाहिए. उन्होंने भूमंडलीकरण और आर्थिक विकास के संदर्भ में भी बहु-अनुशासनिक शैक्षणिक सुधारों पर जोर दिया. उन्होंने भाषाओं के बीच अनुवाद किये जाने और स्थानीय इतिहास, भूगोल, भाषा, संस्कृति को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए.
कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ राजेंद्र भारती ने कहा कि मल्टीडिसीप्लिनरी रिसर्च यानी बहु-अनुशासनात्मक शोध की प्रक्रिया की चुनौतियों की ओर संकेत किया. उन्होंने कहा कि वैश्विक मुद्दों पर शोध के दौरान जिन चीजों पर जिस स्तर और गहराई से ध्यान देना चाहिए, आम तौर पर उस पर ध्यान नहीं दिया जाता. उन्होंने अंर्तअनुशासनिक और बहुअनुशासनिक रिसर्च की जरूरत पर जोर देते हुए उदाहरण दिया कि टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में जो उपलब्धियां हैं, उनका पॉलिटिकल इंप्लीमेंट कैसा हो रहा है, सामाजिकता पर उसका क्या प्रभाव पड़ रहा है, इन सब चीजों पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि रिसर्च की प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है. कोई भी शोध अपने निष्कर्षों में अंतिम नहीं होता, उसमें भविष्य के शोध के लिए संभावनाएं शेष रहनी चाहिए.
सोना देवी विश्वविद्यालय, घाटशिला के कुलपति प्रभाकर सिंह ने स्किल डेवलपमेंट, एआई, चैटबोट, जीटीपी जैसी तकनीकों की शिक्षा में उपयोग करने की बात की. उन्होंने नेशनल सेमिनार करने और बड़े पैमाने पर इसको इंप्लीमेंट करने की बात भी कही, ताकि शोध क्षेत्र का विकास व विस्तार हो सके. उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति में नई तकनीक को बढ़ावा देना ही शिक्षा में जागरूकता होगी.
कोल्हान विश्वविद्यालय के पूर्व परीक्षा नियंत्रक व विश्वविद्यालय के नैक संयोजक डॉ पीके पाणि ने राष्ट्रीय सेमिनार का बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि मल्टी डिसीप्लिनरी रिसर्च तब होता है जब विभिन्न विषयों के संकाय एक सामान्य समस्या या शोध प्रश्न पर स्वतंत्र रूप से काम करते हैं. इस दृष्टिकोण में, संकाय अनुसंधान लक्ष्यों को साझा करते हैं, और एक ही समस्या पर काम करते हैं, लेकिन इसे अपने स्वयं के अनुशासन के दृष्टिकोण से देखते हैं. प्रत्येक विषय के निष्कर्ष एक दूसरे के पूरक होते हैं. मल्टी डिसीप्लिनरी रिसर्च का लाभ यह है कि इससे प्रत्येक पहलू का विश्लेषण संभव हो पाता है, जो अक्सर जटिल शोध समस्याओं का उत्तर देने के लिए आवश्यक होता है. इसके लिए अलग-अलग ज्ञान के अनुशासन के घेरे को तोड़कर आगे बढ़ना जरूरी होता है. उन्होंने कहा कि मल्टी डिसीप्लिनरी रिसर्च के अंतर्गत हिस्टॉरिकल कॉन्टेक्स्ट, भाषा समस्या, कोष और सहयोग सांस्थानिक – कोष संबंधी सहयोग, इंटरेस्ट का टकराव साथ ही सांस्थानिक सहयोग कम मिलता है, फंडिंग का भी लिमिटेशन होता है. अंत में उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज, पर्यावरणीय विज्ञान, मानसिक स्वास्थ्य, स्वास्थ्य मुद्दे ये सब मल्टी डिसिप्लिनरी रिसर्च के विषय हो सकते हैं जो सबके लिए फायदेमंद होगा.
उद्घाटन सत्र के आरंभ में दीप प्रज्ज्वलन के बाद अतिथियों, आमंत्रित विद्वानों, शोधार्थियों, विभिन्न कॉलेजों के प्राचार्यों का सम्मान किया गया. रिसोर्स पर्सन के रूप में सत्यानंद भगत, सुनीता मिश्रा, अर्चना कुमारी, गुमडा मार्री को भी सम्मानित किया गया. इस मौके पर कोल्हान विश्वविद्यालय और एलबीएसएम कॉलेज के कुलगीत का गायन हुआ. मंच पर कोल्हान विश्वविद्यालय के वित्त पदाधिकारी वीके सिंह, विनयम की निदेशक उमा गुप्ता भी मौजूद थे. इस अवसर पर आमंत्रित लोगों में डॉ संजीव आनंद, विमल जलान, डॉ आरके चौधरी, डॉ सरोज, डॉ इंदल पासवान, एससी गोरई, डॉ रवाणी, डॉ जेके सिंह प्रमुख थे.
उद्घाटन सत्र में ही सेमिनार के स्मारिका का लोकार्पण भी हुआ. संचालन बांग्ला विभाग की अध्यक्ष डॉ संचिता भुईसेन और सेमिनार की संयोजक सचिव डॉ मौसमी पॉल ने किया अंत में एनसीसी और एनएसएस के छात्र-छात्राओं ने नृत्य पेश किया. धन्यवाद ज्ञापन सेमिनार के संयोजक राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार गुप्ता ने किया.
दूसरा सत्र टेक्निकल सत्र था, जो सेमिनार हाॅल, कान्फ्रेंस रूम और बहुत उद्देश्यीय सभागार में आयोजित हुआ.
सत्यानंद भगत ने सिनेमा पर केंद्रित वक्तव्य में कहा कि इसके कारण युवा पीढ़ी की नैतिकता का ह्रास हुआ है. उन्होंने एक आंकड़ा देते हुए बताया कि 2014 में 84 करोड़ जीबी डाटा का उपयोग किया गया जबकि चार साल बाद 2018 में 4640 करोड़ जीबी डाटा का उपयोग किया गया और 30% से ज्यादा इंडियन अश्लीलता की ओर धकेल दिए गए. यह बात साबित करती है कि सिनेमा का बढ़ता प्रभाव खास करके जीबी डाटा का बढ़ता प्रभाव और विविध विषयों तक युवाओं की पहुंच के कारण युवाओं में भटकाव भी पैदा हुए और यही कारण है कि उनका चारित्रिक पतन हुआ है. नैतिकता की परिभाषा में बदलाव आया है.
अध्यक्षता करते हुए डाॅ संजीव आनंद ने कहा कि जीवन सीखने की प्रक्रिया है. उन्होंने बताया की नैतिकता की निश्चित परिभाषा नहीं है, लेकिन एक छोटी क्राइटेरिया का निर्धारण किया जा सकता है, जो समाज द्वारा निर्धारित होती है उसे नैतिकता कहते हैं और उन्होंने समाज द्वारा निर्धारित इस नैतिकता की परिभाषा के तीन अंग बताएं पहला, इंटेंशनली किसी को दुख नहीं देना या किसी से बदला ना लेना; दूसरा, किसी भी व्यक्ति को आर्थिक हानि न पहुंचाना और तीसरा, यदि आप किसी का हित नहीं कर सकते हैं तो उसका अहित भी ना करें. इस प्रकार या तीनों कारक नैतिकता की परिसीमा निर्धारित करते हैं.
रिसोर्स पर्सन डाॅ. अर्चना कुमारी ने समाज पर तकनीकी के बढ़ते प्रभाव तथा सामाजिक आर्थिक दशाओं में होने वाले बदलाव पर चर्चा प्रस्तुत करते हुए कहा कि अधिकतर लोग भारत की कृषि पर आधारित है. भारत की स्वयं की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था एक संक्रमण अवस्था से गुजर चुकी है. यहां पर इस तकनीकी विकास ने सर्वप्रथम अगर कोई क्रांति आई तो वह थी हरित क्रांति. नए बीजों का आविष्कार, अधिक उपज देने वाले बीजों के आविष्कार, उर्वरकों के भारी प्रयोग, कीटनाशकों के प्रयोग तथा यंत्रों के प्रयोग के कारण भारत में सबसे पहले कृषि क्षेत्र में विकास होता है. इसके बाद सूचना क्रांति तकनीक का विकास होता है और इस सूचना क्रांति के विकास के आधार पर भारत आज विश्व के बेहतरीन शैक्षिक व्यवस्था के देशों में जाना जाता है. इसी तरह से सुनीता मित्रा सरकार ने अपने शोध पत्र ‘इंडियन डेमोक्रेसी सोशल मूवमेंट वाइस वर्सा इंडियन स्टेट्स’ विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए प्रजातंत्र को परिभाषित किया, उसकी उत्पत्ति को समझाया और प्रजातंत्र के आयाम की चर्चा की. उन्होंने प्रजातंत्र की मजबूती के बारे में विचार रखा, सामाजिक आंदोलन की चर्चा की, उसकी आवश्यकता को बताया, उनकी आवश्यक का घटकों की चर्चा की.
डाॅ. गुमडा मार्डी ने संताल समुदाय पर केंद्रित अपने आलेख में कहा कि सदियों से संतालों के साथ-साथ अन्य आदिवासी समूहों को जंगलों में आदिम जीवन जीने के लिए मजबूर किया गया. उनके ऊपर शोषण एवं दमन जारी रहा. दुनिया के सामने उनकी भाषा संस्कृति को विकसीत नहीं होने दिया गया. असभ्य और जंगलीपन की पहचान थोप कर उनमें हीन भावना भरी जाती रही जबकि जरूरी है कि विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए आदिवासी अवधारणाओं को अपनाया जाए.
इन्होंने प्रस्तुत किए रिसर्च पेपर
टेक्सनिकल सत्र में रांची महिला महाविद्यालय की असिस्टेंट प्रो कुमारी भारती सिंह ने भारतीय अंग्रेजी लेखन का हालिया रुझान, शोधार्थी तूलिका दत्त ने ‘भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण’, मंजू कुमारी ने ‘तसर उद्योग में महिलाओं की भूमिका’, डाॅ. अखौरी मनीषा सिन्हा ने ‘भारत में मानवाधिकार की दशा व दिशा : एक अध्ययन’, श्वेता श्रीवास्तव ने ‘भारत में पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान एवं क्रियान्वयन : संदर्भ- झारखण्ड’, डॉ. अंशु श्रीवास्तव ने ‘भारत में नैतिक विकास’, सुभाष चंद्र महतो ने ‘मध्यकालीन कुड़माली काव्य में निर्गुण भक्ति परम्परा : एक अध्ययन’, निसोन हेम्ब्रम ने ‘संताली लोक गीतों की साहित्यिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि’, डॉ. शबनम परवीन ने ‘महिला सशक्तीकरण’ विषय पर प्रमुख रूप से अपने रिसर्च पेपर पढ़े.
अंत में सर्वश्रेष्ठ तीन आलेख प्रस्तुति करने वाले श्वेता श्रीवास्तव, अंशु श्रीवास्तव एवं पंकज कुमार को पुरस्कृत किया गया. संचालन भूगोल विभाग की अध्यक्ष प्रो. रितु ने किया. अध्यक्षता डाॅ अजय वर्मा ने की. समन्वयक डाॅ विजय प्रकाश थे.प्रतिवेदक की जिम्मेवारी डाॅ संतोष कुमार, डाॅ प्रशांत और डाॅ सुधीर कुमार ने निभाई.