जमशेदपुर.
“बा पोरोब” महज एक त्योहार या आयोजन नहीं है बल्कि ये हमारी आदिवासी, मुलवासी की परम्परा, संस्कृति की पहचान है. ये पर्व हमें प्रकृति की रक्षा के साथ उसके संपूर्ण महत्व को दर्शाता हैं. ये बातें जुगसलाई विधायक मंगल कालिंदी ने हुरलूँग पंचायत के गरुड़बासा स्थित दालखम मैदान में आयोजित बा पोरोब के दौरान बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे. कार्यक्रम का आयोजन आदिवासी मुलवासी एकता मंच के द्वारा किया गया था. विधयाक ने कहा कि आदिवासी समुदाय आदिकाल से जल जंगल पर ही निर्भर रहा है, इसलिए हम इसे ही अपना देवी देवता मानते है.
बिगड़ते पर्यावरण में प्रकृति पर चिंता और ऐसे आयोजन जरूरी है
विधायक मंगल कालिंदी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आगे कहा कि वर्तमान में पर्यावरण की जो स्थिति है उसे संदर्भ में प्रकृति की चिंता और ऐसे कार्यक्रम का आयोजन जरूरी हो जाता है. इसके माध्यम से हम न केवल प्रकृति के महत्व को बताते हैं बल्कि स्थिति की चिंता करते हुए उसके संरक्षण की बात करते हैं.
आदिवासी समुदाय और परंपरा का संरक्षण है जरूरी : पीयूष
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर एबीएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ विजय कुमार पियूष शामिल हुए. उन्होंने आदिवासियों के साथ हो रहे छल और उनके नष्ट हो रही परंपरा पर गंभीरता से बात बात रखी. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को टारगेट करके उनकी परंपरा को समाप्त करने का प्रयास चल रहा है. डॉ पीयूष ने समुदाय के युवाओं को इस क्षेत्र में आने के लिए आगे कहा. उन्होंने आह्वान करते हुए कहा कि युवा अगर आगे आएंगे तो न केवल अपनी परंपरा की रक्षा कर पाएंगे बल्कि खुद के अस्तित्व को भी बचा पाएंगे.
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अतिथियों का हुआ पारम्परिक स्वागत
कार्यक्रम के दौरान समाजिक एवं संस्कृतिक विरासत को रक्षा करने वाले समाज के अगुआओं को आदिवासी गमछा देकर स्वागत किया गया. साथ ही कार्यक्रम में आये अतिथियों का स्वागत भी पारम्परिक तरीके से किया गया. कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि पूर्वी सिंहभूम जिला बीससूत्री उपाध्यक्ष मोहन कर्माकर भी शामिल हुए, उन्होंने भी कार्यक्रम को संबोधित किया.
संस्कृति की रक्षा करना है उद्देश्य : कृष्णा लोहार
मंच के चेयरमेन कृष्णा लोहार ने बताया कि शहर में झारखंडी संस्कृति लुप्त होने से बचाने के लिए प्रतिबद्ध है. इसी के तहत यह कार्यक्रम किया जाता है.
पूजा और सांस्कृतिक कार्यक्रम का हुआ आयोजन
कार्यक्रम में सबसे पहले ग्रामीणों के द्वारा पारम्परिक रूप से प्रकृति का पूजा अर्चना किया. इसके बाद खेलखुद आयोजन किया गया. साथ ही हो, मुंडा, भूमिज, उरांव एवं लोहार समाज के द्वारा पारम्परिक नृत्य कार्यक्रम किया गया.
रात के साथ चढ़ता गया कार्यक्रम का रंग
रात्रि 10 बजे से झारखंड संस्कृति के प्रमुख छौ नृत्य का भी आयोजन किया गया. छौ नृत्य में छुटु लोहार के टीम खाड़ीपहाड़ी मानभूम जनशक्ति छौ नृत्य समिति का विशेष रूप से प्रस्तुति दिया. उस्ताद संजय उरांव के टीम ने भी इसके टक्कर में अपना मनमोहक प्रस्तुति दिया. देर रात तक चले इस कार्यक्रम में जैसे जैसे रात होती गई वैसे वैसे कार्यक्रम का रंग भी चढ़ता गया. हजारों की भीड़ कार्यक्रम को देखने के लिए उपस्थित रहे.