- हर प्रयास के बावजूद बाल विवाह बढ़ने के मामले को लेकर सभी चिंतित, चिंतन कर समस्या का समाधान निकालने पर विचार विमर्श
- बाल विवाह के मामले में झारखंड देश में तीसरे स्थान पर
- राज्य में तीन हजार से अधिक चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी व 40 चाइल्ड प्रोटेक्शन ब्लॉक लेवल कमेटी निबंधित हैं
जमशेदपुर.
सरकार, गैर सरकारी संगठनों के विभिन्न प्रयासों, जागरूकता अभियान के बावजूद बाल विवाह जैसे मामले रूक नहीं रहे हैं. दुर्भाग्य है कि देश में सौ साल से भी ज्यादा पहले समाजसुधारक राजाराम मोहन राय ने बाल विवाह प्रथा पर रोक लगाने की पहल की थी. देश आजादी के पहले ही 1927 में बाल विवाह को रोकने के लिए कानून बना, जिसमें समय के साथ कई बार बदलाव किये गये. लेकिन आश्चर्य की बात है कि आज भी देश व समाज उसी परिस्थिति में है जब बाल विवाह जैसे मुद्दों पर बात कर रहा है और सरकार को करोड़ों रुपये इसके रोकथाम के लिए खर्च करने पर पड़ रहे हैं. फिर भी मामले में गिरावट के नाम पर नतीजा संतोषजनक नहीं है. झारखंड बाल विवाह के मामले में पूरे देश में तीसरे स्थान पर है. यह स्थिति तब है जब झारखंड में तीन हजार से अधिक चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी और 40 चाइल्ड प्रोटेक्शन ब्लॉक लेवल कमेटी निबंधित है. झारखंड में शिक्षा के मामले में पूर्वी सिंहभूम नंबर एक पर है. बावजूद यहां भी बाल विवाह के मामले थमने का नाम नहीं ले रहा है. इन्हीं सब मुद्दों को लेकर आज बिष्टुपुर के होटल बुलेवर्ड में आदर्श सेवा संस्थान के नेतृत्व में शहर की विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ एक बैठक की गयी. सभी संस्थाओं ने मिलकर यह चिंता जाहिर करते हुए समाधान निकाले पर विचार विमर्श किया कि बाल विवाह, बाल मजदूरी, बाल अधिकार हनन मामले में कैसे कमी लायी जाये. चाइल्ड लाइन की जिला को-ऑर्डिनेटर रीना दत्ता ने पूर्वी सिंहभूम में बाल विवाह की स्थिति, किये जा रहे कार्य, रोकथाम, जागरूकता जैसे कार्यों की जानकारी स्लाइड प्रस्तुति के माध्यम से दी. वहीं रांची की संस्था प्रतिज्ञा से आये चंदन सिंह ने बाल विवाह को लेकर हो रहे काम, स्थिति व बदल रही परिस्थिति पर चर्चा करते हुए मौजूद सभी संस्थाओं के प्रतिनिधियों से उनका मंतव्य जाना. कार्यक्रम के दौरान मंच पर महिलाओं व बच्चों के लिए काम करने वाली अंजली बोस, पूरबी घोष, रवि शास्त्री मौजूद रहे. कार्यक्रम का संचालन लक्खी दास ने किया.
बाल विवाह के बदल गये स्वरूप, अब बच्चे ही खुद ले रहे हैं फैसले :
बैठक में यह बात मुख्य रूप से सामने आयी कि बाल विवाह की वर्तमान परिस्थिति (कुछ समाज, जाति अपवाद के तौर पर छोड़ कर) पहले के मुकाबले बिल्कुल बदल चुकी है. पहले समाज में व्याप्त कुरीतियों के कारण बाल विवाह होता था, लेकिन अब अधिकतर मामले में खुद नाबालिकों की मर्जी से शादी हो रही है. नाबालिकों की शादी की जानकारी के बाद जब जिम्मेदार संस्थाएं उनका रेस्क्यू करती हैं, तो यह बात सामने आती है. अब ऐसे संस्थाए, पुलिस प्रशासन को कार्रवाई करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में अगर लड़कि पक्ष से लड़के पर मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है, तो लड़के पर पोक्सो एक्ट लग जाता है. जहां नाबालिक लड़के का ऐसा अपराध नहीं होता है जिसके कारण उसको पोक्सो एक्ट चलाया जाये, लेकिन शिकायत और लागू कानून के तहत लड़का पोक्सो में फंस जाता है.
टास्क फोर्स के गठन की बात
बैठक के दौरान मूल रूप से यह बात सामने आयी कि बाल विवाह, बाल मजदूरी, बाल अधिकार हनन का मामले को रोकना या लोगों को जागरूक करना किसी एक संस्था की जिम्मेदारी नहीं है. और यह तब भी एक संस्था की जिम्मेदारी नहीं है जब इस मामले में प्रशासन और सरकार का रवैया भी सकारात्मक नहीं है. इसलिए सभी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ मिल कर एक संयुक्त मंच बनाने की बात की गयी. सर्वसम्मति से इस बात पर जोर दिया गया कि सभी संस्थाओं एक मंच पर आकर एक टास्क फोर्स का गठन करे. ताकि इस मामले में मिल कर मजबूती से काम कर सके जिसका असर समाज, प्रशासन, सरकार पर भी पड़ेगा. यह तय किया गया कि अगस्त में एक और बैठक होगी और यह तय किया जायेगा कि टास्क फोर्स की क्या रूप रेखा होगी, कैसे काम होगा, किसकी क्या जिम्मेदारी और जवाबदेही होगी? यह तय कर टास्क फोर्स गठन की घोषणा की जायेगी.
डराने और चौंकाने वाले हैं डेमोग्राफिक सैंपल सर्वे की रिपोर्ट
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया द्वारा जारी डेमोग्राफिक सैंपल सर्वे की रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि झारखंड में सबसे अधिक बालिकाओं की शादी कम उम्र में होती है. यहां अभी भी 5.8 प्रतिशत बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम आयु में हो जाती है. पूरे देश में ऐसी बालिकाओं का प्रतिशत 1.9 है, जिनकी शादी वयस्क होने से पूर्व हो जाती है. दूसरी तरफ, केरल जैसा राज्य भी है जहां एक भी बालिका की शादी 18 वर्ष से पहले नहीं होती.
वर्ष 2020 में हुए सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में 7.3 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में तीन प्रतिशत बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है. इस रिपोर्ट के अनुसार, बड़े राज्यों में झारखंड के अलावा चार अन्य राज्य भी शामिल हैं, जहां तीन प्रतिशत से अधिक बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से पूर्व हो जाती है.
- बंगाल (4.7 प्रतिशत),
- ओडिशा (3.7 प्रतिशत),
- बिहार (3.4 प्रतिशत) तथा
- उत्तर प्रदेश (3.3 प्रतिशत)
झारखंड में आधे से अधिक बालिकाओं की शादी 21 वर्ष से पहले हो जाती है. यहां लगभग 54.6 प्रतिशत बेटियों की शादी 21 वर्ष से पहले हो जाती है. हालांकि इस मामले में पश्चिमी बंगाल झारखंड से भी आगे हैं जहां 54.9 प्रतिशत बालिकाओं की शादी इस आयु से पहले हो जाती है. पूरे देश में 29.5 प्रतिशत लड़कियों की शादी 21 वर्ष आयु से पहले हो जाती है.
- 18 वर्ष से पहले – 5.8,
- 18 से 20 वर्ष – 48.8,
- 21 वर्ष से अधिक – 45.4
झारखंड में बाल विवाह की स्थिति
गोड्डा 63.5 प्रतिशत, गढ़वा 58.8 प्रतिशत, देवघर 52.7 प्रतिशत, गिरिडीह 52.6 प्रतिशत, कोडरमा 50.8 प्रतिशत, चतरा 49 प्रतिशत, दुमका 47.4 प्रतिशत, जामताड़ा 44.7 प्रतिशत, पाकुड़ 41.9 प्रतिशत, हजारीबाग 40.8 प्रतिशत, पलामू 40.5 प्रतिशत, साहेबगंज 38.4 प्रतिशत, लातेहार 37.1 प्रतिशत, सरायकेला 33.2 प्रतिशत, बोकारो 30.6 प्रतिशत, धनबाद 29.9 प्रतिशत, लोहरदगा 28.5 प्रतिशत, रांची 28.1 प्रतिशत, खूंटी 27.8 प्रतिशत, रामगढ 27.1 प्रतिशत, पूर्वी सिंहभूम 26.1 प्रतिशत, गुमला 24 प्रतिशत, पश्चिमी सिंहभूम 21.3 प्रतिशत, सिमडेगा 14.7 प्रतिशत. (सभी आंकड़े विभिन्न स्रोत व मीडिया रिपोर्ट पर आधारित है.)
बाल विवाह के कारण मातृ मृत्यु दर 90 प्रतिशत :
यूनिसेफ के अनुसार बाल विवाह के कारण नवजात बच्चों के मृत्यु दर की संख्या काफी ज्यादा है. प्रसव के दौरान ही मातृ मृत्यु दर 90 फीसद से अधिक बढ़ जाता है. बाल विवाह के कारण देश व राज्य का आर्थिक विकास नौ फीसद तक घट जाता है. पोक्सो एक्ट के तहत 18 वर्ष से कम आयु में किया गया यौन हिंसा अपराध की श्रेणी में आता है. गोड्डा, गिरिडीह, कोडरमा व चतरा में बाल विवाह से संबंधित मामले सबसे अधिक है. जबकि सिमडेगा में बाल विवाह के मामले सबसे कम हैं. बाल विवाह पर रोकथाम से टीनएज प्रिग्नेंसी से संबंधित मामले कम होंगे. उन्होंने कहा कि टीनएज प्रिग्नेंसी को रोकने के लिए अधिक से अधिक बच्चियों को स्कूल से जोड़ने की आवश्यकता है. कोडरमा, गढ़वा, देवघर व गिरिडीह में टीनएज प्रिग्नेंसी की संख्या सबसे अधिक है.
पोक्सो एक्ट में कुछ खामिया :
चर्चा के दौरान यह बात भी सामने आयी कि बच्चों के लिए काम करने वाली संस्थाएं हो या कानून को लागू करने वाली बॉडी सभी के अधिकतर जिम्मेदार व्यक्ति पोक्सो एक्ट के प्रति पूरी तरह से जागरूक नहीं है. दूसरी ओर पोक्सो एक्ट के गलत इस्तेमाल पर भी चर्चा हुई और इसको लेकर संस्थाओं को गंभीर होने की बात कही गयी. पोक्सो एक्ट के प्रति बच्चों, शिक्षक संस्थान के जिम्मेदार व्यक्ति, सरकारी विभाग के जिम्मेदार अधिकारी, सामाजिक संस्थाएं जो इस क्षेत्र में काम कर रही हैं उन सभी को इस एक्ट की पूरी जानकारी के साथ ही यह भी देखने व जागरूक रहने की जरूरत है कि इसका गलत इस्तेमाल न हो. या इस केस में फंस कर किसी दूसरे नाबालिक का भविष्य खराब न हो जाये. इस पर चिंतन करने की बात कही गयी.