डॉ. स्नेहा झा.
हर वर्ष 31 मई को मनाया जाने वाला ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ न केवल तंबाकू सेवन से होने वाले स्वास्थ्य नुकसान की याद दिलाता है, बल्कि हमें यह सोचने पर भी मजबूर करता है कि आखिर क्यों आज भी करोड़ों लोग इसकी गिरफ्त में हैं। वर्ष 2025 की थीम “आकर्षण को बेनकाब करें” हमें इस छलावे को पहचानने की चुनौती देती है, जिसमें तंबाकू कंपनियां वर्षों से नशे को जीवनशैली, ग्लैमर और स्वतंत्रता के नाम पर बेचती आई हैं। यह दिन हमें सच का सामना करने और इस घातक लत के पीछे छिपे झूठ और चालाकी को बेनकाब करने का आह्वान करता है।
एक रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट के रूप में मैं हर दिन तंबाकू से होने वाले विनाश को बेहद करीब से देखती हूँ। कैंसर से छलनी फेफड़े, बीमारी से सड़ चुके गले, और सालों की लत से कमजोर हो चुके दिल—जब ये सब ब्लैक एंड वाइट स्कैन में उभरते हैं, तो वे सिर्फ मेडिकल इमेज नहीं होते। वे अधूरी ज़िंदगियों की अनकही पुकार होते हैं, उन परिवारों की खामोश चीखें होते हैं जिन्हें तंबाकू ने तोड़ दिया। यह सिर्फ एक बीमारी नहीं, एक त्रासदी है—जिसे चाहा जाता तो रोका जा सकता था।
तंबाकू सिर्फ नुकसान नहीं पहुँचाता—यह धोखा देता है। दशकों से विज्ञापन अभियानों ने धूम्रपान और तंबाकू सेवन को सफलता, विद्रोह और आकर्षण से जोड़कर प्रस्तुत किया है। चमचमाती पैकेजिंग, फ्लेवर्ड विकल्प, और प्रभावशाली हस्तियों के प्रचार ने तंबाकू उत्पादों को खासतौर पर युवाओं के लिए और भी लुभावना बना दिया है। लेकिन इस चमकते हुए नकाब के पीछे छिपा है एक कड़वा सच—हर साल दुनियाभर में 80 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत तंबाकू से होती है, जिनमें 13 लाख वे लोग हैं जो खुद सेवन नहीं करते, लेकिन दूसरों के धुएँ का शिकार बनते हैं।
भारत में तंबाकू एक गहराता हुआ संकट बन चुका है। हर दस में से लगभग एक भारतीय वयस्क किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करता है, और इसका सीधा परिणाम है सिर, गले और फेफड़ों के कैंसर में बेतहाशा वृद्धि। दुर्भाग्य की बात यह है कि इनमें से अधिकांश मामले तब सामने आते हैं जब बीमारी अंतिम चरण में पहुँच चुकी होती है—जब इलाज सबसे जटिल होता है और उम्मीदें सबसे कम। मेहरबाई टाटा मेमोरियल अस्पताल में हम यह भयावह रुझान साफ़ देख रहे हैं: पहले जहाँ ये बीमारियाँ उम्रदराज़ लोगों में देखी जाती थीं, अब युवा मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह न केवल तंबाकू उद्योग की आक्रामक मार्केटिंग का नतीजा है, बल्कि समाज में इसके घातक प्रभावों के प्रति जागरूकता की गंभीर कमी को भी उजागर करता है।
इस विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर आइए, हम मिलकर तंबाकू के झूठे आकर्षण को बेनकाब करें। युवाओं को वह शक्ति दें जो सच्ची जानकारी से आती है—झूठे ग्लैमर के जाल से नहीं। माता-पिता अपने बच्चों से संवाद करें, शिक्षक तंबाकू के खतरों को शिक्षा का हिस्सा बनाएं, और नीति-निर्माता ऐसे उत्पादों के विज्ञापन, स्वादयुक्त विकल्पों और सार्वजनिक धूम्रपान पर सख्त प्रतिबंध लागू करें।
हम जैसे स्वास्थ्य संस्थान—मेहरबाई टाटा मेमोरियल अस्पताल सहित—तंबाकू से जुड़ी बीमारियों की जल्दी पहचान, उपचार और नशा मुक्ति के प्रयासों में निरंतर कार्यरत हैं। लेकिन सबसे प्रभावी समाधान वही है जो शुरुआत में ही इस ज़हर को रोक दे।
तंबाकू हमारे जीवन में कोई जगह नहीं रखता। अब वक्त है कि हम इस ख़तरनाक ज़हर को आकर्षण का प्रतीक मानना बंद करें और अपने भविष्य की हिफ़ाज़त करें।
स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। सच को अपनाएं। एक ऐसा जीवन चुनें जिसमें तंबाकू के लिए कोई स्थान न हो—स्वस्थ, सशक्त और स्वतंत्र।
नाेट: डॉ. स्नेहा झा द्वारा लिखित, एचओडी, रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग, मेहरबाई टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल