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झारखंड की अग्रणी सामाजिक संस्था श्रमजीवी महिला समिति द्वारा संवैधानिक मूल्य फेलोशिप कार्यक्रम के तहत चौथी क्रॉस-लर्निंग और दृष्टिकोण निर्माण कार्यशाला 26 से 29 जुलाई 2025 तक सफलता पूर्वक आयोजित की गई। चार दिवसीय यह आवासीय कार्यशाला विकास भारती, सुंदरनगर, जमशेदपुर परिसर में संपन्न हुई।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य फेलोज़ के बीच वैज्ञानिक दृष्टिकोण, प्रभावी संवाद, वकालत और न्याय तक पहुंच जैसे विषयों पर समझ को गहराई देना था, जिससे वे अपने क्षेत्रों में संवैधानिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार में और सशक्त भूमिका निभा सकें। कार्यशाला का संचालन श्रमजीवी महिला समिति की मुख्य कार्यकारी पुरबी पाल के नेतृत्व में किया गया।
इस आयोजन में झारखंड के विभिन्न जिलों से आए 21 फेलो, 4 मेंटर्स, 4 विषय विशेषज्ञ, और जमशेदपुर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) से जुड़े प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
प्रमुख सत्रों की झलकियां:
पहला दिन:
फेलोज़ ने अपने पिछले तीन महीनों के फील्ड अनुभव साझा किए। इस आदान-प्रदान से परस्पर सीखने का अवसर मिला और स्थानीय चुनौतियों को समझने की नई दृष्टि विकसित हुई।
दूसरा दिन:
डॉ निर्मला शुक्ला और विकास कुमार द्वारा वैज्ञानिक सोच, तर्कशक्ति और सार्वजनिक जीवन में विज्ञान की भूमिका पर संवादात्मक सत्र लिए गए।
तीसरा दिन:
वकालत एवं संवाद कौशल पर केंद्रित सत्रों में मीडिया का उपयोग, जननीति को प्रभावित करने की रणनीतियाँ, याचिका एवं प्रेस विज्ञप्ति लेखन, और रचनात्मक लेखन के ज़रिए बदलाव जैसे विषयों पर गहन चर्चा हुई। इन सत्रों का संचालन पुरबी पाल, तरुण कुमार और विकास श्रीवास्तव ने किया।
अंतिम दिन:
जमशेदपुर DLSA (डालसा) की टीम – मुख्य LADC बिदेश सिन्हा, सहायक LADC मनोज कुमार सिंह, एवं पैनल अधिवक्ता सुग्गी मुर्मू ने कानूनी जागरूकता सत्र संचालित किए।
फेलोज़ ने निःशुल्क कानूनी सहायता, एससी/एसटी अधिनियम, ट्रांसजेंडर अधिनियम, RTI, और शिकायत निवारण प्रणाली पर जानकारी प्राप्त की, साथ ही कुछ वास्तविक कानूनी मामलों पर भी चर्चा की गई। इस क्रॉस लर्निंग में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन से शिवांगी आनंद उपस्थित रहें.
सांस्कृतिक कार्यक्रम के जरिए दिया संदेश
कार्यशाला के दौरान एक विशेष छऊ नृत्य प्रस्तुति की गई जिसे फेलो युधिष्ठिर महतो ने कोरियोग्राफ किया। नृत्य दो सामाजिक विषयों पर आधारित था: “समान वेतन, समान दाम” – महिला किसानों की मजदूरी की असमानता। “एकलव्य की कहानी” – जाति और वर्ग के कारण दबती प्रतिभाओं की सच्चाई। यह प्रस्तुति इस बात का सशक्त उदाहरण बनी कि कला के माध्यम से भी संवैधानिक मूल्यों का प्रचार-प्रसार संभव है।
यह कार्यक्रम युवाओं के लिए सिर्फ एक शिक्षण ही नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात करने और उन्हें समुदाय में प्रसारित करने का प्रेरणास्रोत बन गया। फेलोज़ ने यह महसूस किया कि समानता, न्याय, स्वतंत्रता, गरिमा और लोकतांत्रिक भागीदारी केवल किताबों के विषय नहीं हैं, बल्कि उन्हें अपने रोज़मर्रा के जीवन में जीने और ज़मीन पर उतारने की जरूरत है।