– इंटर की पढ़ाई का बंद होने के बाद उन पैसो का क्या होगा?
– उचित दिशा निर्देश नहीं मिलने का हवाला देकर दाखिला नहीं ले रहे कॉलेज, फंड पर क्यों नहीं करते बात
– जितनी राशि उतने हर कॉलेज में इंटर का अलग बिल्डिंग निर्माण संभव
Campus Boom.
नयी शिक्षा नीति 2020 के तहत डिग्री कॉलेजों में इंटर के नामांकन पर झारखंड राजभवन ने रोक लगा दिया है. वहीं 2022 के बाद से जारी पढ़ाई और नामांकन को भी गलत करार देते हुए विश्वविद्यालय और महाविद्यालय से जवाब मंगा गया है. राजभव के इस निर्देश को राज्य सरकार और शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने साजिश करार दिया है. अब इस मामले में राज्य भवन सचिवालय और राज्य सरकार आमने सामने है. पूरे राज्य में नई शिक्षा नीति लागू होनी है, ऐसा सरकार का भी संकल्प है, लेकिन बगैर तैयारी के पढ़ाई बंद कर दिए जाने से विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है. 2023 में हेमंत सोरेन बतौर मुख्यमंत्री ने 2025-27 सत्र तक दाखिला जारी रखने की अनुमति निर्देश जारी किया था. लेकिन इसी बीच राजभवन सचिवालय द्वारा दाखिला को बंद करना सरकार और राजभवन के बीच की दूरियां को दर्शाता है. लेकिन इन दोनों के बीच विश्वविद्यालय और महाविद्यालय बिल्कुल चुप और शांत मगरमछ की भूमिका में है.
कॉलेज केवल इंटर में दाखिला के मामले में ही चुप्पी नहीं साधे बैठा है, वे तो करोड़ों रुपये पड़े फंड के बारे में भी बिल्कुल मौन है. दरअसल राज्य के जिन अंगीभूत डिग्री कॉलेजों में इंटर की पढ़ाई होती है, वहां विद्यार्थियों से लिया गया दाखिला फीस के तौर पर करोड़ों रुपये पड़ा है. अब सवाल उठता है कि अगर इंटर की पढ़ाई कॉलेजों में बंद कर दी जायेगी, तो उन रुपयों का क्या होगा? कौन उसका हकदार होगा, या किस मद में उस राशि काे खर्च किया जायेगा? हालांकि इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में है. आज के इस पोस्ट में हम आपको इंटर के फंड पर विशेष रूप से जानकारी देंगे.
राज्य के 62 कॉलेजों में 77 से 90 करोड़ की राशि :
एक जानकारी के अनुसार प्रत्येक डिग्री कॉलेज जहां इंटर की पढ़ाई का संचालन हो रहा है. वहां विद्यार्थियों से दाखिला के तौर लिया गया करोड़ों रुपये फंड के रूप में है. सूत्रों के अनुसार प्रत्येक कॉलेज में सवा करोड़ से डेढ़ करोड़ रुपये है. राज्य में 62 अंगीभूत डिग्री कॉलेज है. डेढ़ करोड़ के हिसाब से 90.30 करोड़ रुपये यह राशि होती है. अगर औसतन सवा करोड़ रुपये प्रत्येक कॉलेज में राशि है, तो यह कुल मिलाकर 77.50 करोड़ रुपये होता है.
वर्तमान शिक्षकों और कर्मचारियों को फरवरी माह तक वेतन देने के बाद भी बचेंगे करोड़ों रुपये :
अब तर्क यह होगा कि वर्तमान में 12वीं की पढ़ाई आरंभ रहेगी और शिक्षक व कर्मचारियों को फरवरी 2026 यानी परीक्षा होने तक वेतन देना होगा. अब आपको एक आंकड़ा के आधार बताते हैं कि अगले आठ माह का वेतन देने के बाद भी कैसे करोड़ों रुपये खाते में बचे रह जायेंगे. इन 62 कॉलेजों में संविदा पर करीब 600 टीचर और 400 थर्ड ग्रेड, फोर्थ ग्रेड स्टाफ कार्यरत हैं. टीचर को फिक्स 12 हजार, थर्ड ग्रेड को 8000 रुपये और फोर्थ ग्रेड को 6000 रुपये प्रति माह फिक्स मानदेय मिलता है. ऐसे में 600 शिक्षकों को 12 हजार प्रत्येक माह वेतन अगले आठ माह तक दिया जायेगा तो यह 72 लाख रुपये होता है. इसी तरह तृतीय व चतुर्थ के कर्मियों का औसतन वेतन 7000 हजार माना जाये तो यह 400 कर्मियों के बीच अगले आठ माह तक 28 लाख दिया जायेगा. यानी 1000 कर्मियों को एक करोड़ रुपये मानदेय के रूप में दिये जायेंगे. तो भी प्रत्येक कॉलेजों में एक से 1.5 करोड़ रुपये का फंड बचेगा. अब इसे ऐसे समझिए. प्रत्येक कॉलेज में अगर औसतन फंड सवा करोड़ भी मानते हैं, तो 62 कॉलेजों को मिलाकर यह तकरीबन 77.50 करोड़ रुपये होता है. इसमें एक करोड़ अगले आठ माह के मानदेय का घटा देने से यह 76.50 करोड़ होता है. यानी यह राशि विभिन्न कॉलेजों के खाते में बच जायेगी. यही नहीं अभी डिग्री कॉलेजों में सत्र 2024-26 में दाखिला लिये विद्यार्थी जो 11वीं पास किये हैं वे 12वीं में दाखिला लेंगे. कॉलेजा में इंटर के विद्यार्थियों की संख्या और अलग अलग फीस स्ट्रक्चर के अनुसार अनुमानित राशि प्रत्येक कॉलेज में 15 लाख रुपये 12वीं में दाखिला फीस के तौर पर आयेगा. अब 15 लाख को 62 कॉलेजों से गुणा करने पर यह राशि करीब 9.30 करोड़ रुपये होता है. अब इसे पूर्व के बची राशि 76.50 करोड़ में जोड़ने से यह 85.80 करोड़ रुपये होता है. अब इस राशि को 62 कॉलेजों में बराबर कर के भी विभाजित करते हैं, तो यह 1.38 करोड़ रुपये से ज्यादा होता है. हालांकि यह औसतन है. इसमें कुछ कॉलेजों में 80 लाख तो किसी के पास 1.5 करोड़ रुपये राशि बचेगी. यह पूरा अनुमान न्यूनतम राशि पर रखा गया है. अगर उचित आंकड़ा सारे कॉलेजों से प्राप्त हो तो आंकड़े की तस्वीर कुछ और होगी.
दाखिला राशि पर जैक का अधिकार और कंट्रोल नहीं :
कॉलेजों द्वारा इंटर में दाखिला के तौर पर लिए जाने वाले शुल्क पर जैक यानी झारखंड एकेडमिक काउंसिल का कोई अधिकार या कंट्रोल नहीं है. दाखिला का पूरा पैसा कॉलेज रखते हैं. इंटर के शिक्षक व कर्मचारियों को मानदेय इसी दाखिला फीस की राशि में से दिया जाता है. विद्यार्थियों से पंजीयन और परीक्षा शुल्क जो लिया जाता है वह सीधे जैक के पास जाता है. इसके अलावा अन्य पूरी राशि कॉलेज रखता है. ऐसे में जैक का इस राशि पर कोई अधिकार या कंट्रोल भी नहीं है. अब सवाल यह है कि कॉलेज इंटर के विद्यार्थियों से अर्जित राशि का क्या करेंगे? क्या यह राशि सरकार को लौटायी जायेगी? सरकार अगर इन पैसे को लेती भी है, तो उसे किस मद में खर्च किया जायेगा.
कई कॉलेजों में बन सकता है इंटर का नया बिल्डिंग :
अगर इंटर को डिग्री कॉलेज से अलग ही करना है, तो कई कॉलेजों के पास 25 से 30 एकड़ भूमि है. उसी भूमि में एक एकड़ की भूमि देकर इंटर के लिए अलग बिल्डिंग निर्माण करते हुए पूरी प्रशासनिक व्यवस्था उसकी अलग हो सकती है. इससे कॉलेजों में पड़ी राशि का भी उपयोग हो जायेगा और इंटर के विद्यार्थियों का दाखिला भी हो पायेगा. सरकार इस राशि का उपयोग प्लस टू हाई स्कूल के विकास कार्य में भी कर सकती है.
शिक्षको के भविष्य के लिए भी राशि का हो सकता है उपयोग
दूसरी ओर इंटर के लिए संविदा पर वर्षों से काम कर रहे शिक्षक, कर्मचारियों के भविष्य के लिए भी इस राशि का उपयोग हो सकता है. दरअसल इंटर में संविदा पर कार्यरत शिक्षक और कर्मचारियों को मानदेय के अलावा कोई भी लाभ नहीं मिलता है. पीएफ, ईएसआई भी उन्हें दिया नहीं दिया जाता है. ऐसे में अगर इंटर की पढ़ाई बंद होने के बाद इन शिक्षकों की मांग के अनुसार इनका समायोजन नहीं होता है, तो यह पूरी तरह से बेरोजगार हो जायेंगे. सरकार अगर पहल करेगी, तो इन राशियों का उपयोग इन शिक्षकों के भविष्य के लिए उपयोग कर सकती है.