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पेंशनर समाज, साकची के सभागार में जनवादी लेखक संघ, सिंहभूम ईकाई द्वारा प्रेमचंद जयन्ती का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता के रुप में डॉ अहमद बद्र एवं साथी वक्ता कामरेड शशि कुमार, डीएनएस आनंद, शैलेन्द्र अस्थाना, अजय मेहताब व सतीश कुमार उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता ज्योत्सना अस्थाना ने किया। संचालन वरुण प्रभात एवं धन्यवाद ज्ञापन तापस चट्टराज ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रेमचंद की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर किया गया। तदुपरांत युवा साथी निशांत कुमार सिंह ने प्रेमचंद की कहानी नमक का दरोगा पर अपनी बात रखते हुए वंशीधर और पंडित आलोपीदीन के चरित्र को आज के परिवेश से जोड़ते हुए कहा कि आज भी बेईमानों को ईमानदार आदमी की जरूरत है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर नमक के दरोगा का मूल्यांकन किया जा सकता है।
कवि शुभम कुमार ने ईदगाह कहानी के माध्यम से बाजारवाद पर प्रहार किया। उसने ईदगाह के हवाले से चिमटा बेचने वाले दुकानदार की चर्चा की और सड़क किनारे लगने वाली दुकानों के साथ माल संस्कृति के बीच के अन्तर को रेखांकित करते हुए ज्यादा से ज्यादा समान ठेले-खोमचें से खरीदने पर बल दिया।
युवा हस्ताक्षर सुनील सैलानी ने कविता के माध्यम से प्रेमचंद को याद किया। साथी अजय मेहताब ने सद्गति कहानी को चित्रित करते हुए लकड़ी के उस गांठ को मजबूती से फाड़ने की सिफारिश की, जिसे फाड़ते हुए कहानी का नायक दुखी चमार यमलोक पहुंच जाता है।
कामरेड काशीनाथ प्रजापति ने जनगीत के साथ प्रेमचंद की कहानियां एवं उपन्यास के शीर्षकों पर लघु कथा सुनाई। कामरेड देवाशीष मुखर्जी ने प्रेमचंद के संपादन व आलेख पर चर्चा करते हुए पूंजी व धर्म को मनुष्यता का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया। शैलेन्द्र अस्थाना ने कर्मभूमि उपन्यास के संदर्भों से आज के परिवेश को जोड़ते हुए अपनी बात कही।
कहानीकार कृपाशंकर ने प्रेमचंद के गांव व उनके पात्रों पर विस्तृत चर्चा की।डीएनएस आनंद ने प्रेमचंद की कहानियों को पढ़ने एवं उसपर लगातार कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी। कामरेड शशी कुमार ने प्रेमचंद की कहानियों के हवाले से राष्ट्रवाद की अवधारणा को धृतराष्ट्र अर्थात जन्म से ही अंधा की संज्ञा देते हुए ,आज के समय में’दुनिया के मजदूरो एक हो’ नारा की विशेष जरूरत बताई।
डॉ अहमद बद्र ने प्रेमचंद की कुछेक कहानियों पर टिप्पणी करते हुए धर्म, बाजार व नीति को व्याख्यायित किया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के पात्र आज भी रेंग रहे है बस उसका स्वरूप बदला है। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए ज्योत्सना अस्थाना ने ‘ब्रम्ह का स्वांग’ कहानी को उदाहरण सहित चित्रित किया एवं उसे आज भी चरितार्थ होते हुए देखने की बात कहीं। कार्यक्रम में अर्चना कुमारी, संध्या ठाकुर, के वी पाई, पशुपति सिन्हा, प्रिंस, विक्रम कुमार, एस के उपाध्याय, निर्मल, विमल किशोर विमल, असर भागलपुरी आदि की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है।