Campus Boom.
जनवादी लेखक संघ सिंहभूम इकाई द्वारा हिन्दी दिवस के शुभ अवसर पर भोजपुरी भवन गोलमुरी में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ज्योत्सना अस्थाना ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र को नमन करते हुए की गई। अतिथियों का शब्द सुमनों से स्वागत काशीनाथ प्रजापति ने किया।
युवा साहित्यकार अजय महताब ने हिन्दी का उद्भव एवं विकास पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारी मातृभाषा भले ही अलग-अलग हो लेकिन जो भाषा हम सबको एक दूसरे से जोड़ती है,जो हमारे संबंध को प्रगाढ़ करती है और हमें रोजगार प्रदान करती है,वह हिन्दी है।
युवा कवि निशांत कुमार सिंह ने हिन्दी और भारतेन्दु को याद करते हुए कहा कि हिन्दी को सूत्रधार बनाने में भारतेन्दु का योगदान अविस्मरणीय है।नवोदित लेखिका अर्चना ठाकुर ने हिन्दी को मजदूर की भाषा, रोटी की भाषा बताते हुए अनेक विश्लेषणात्मक बात रखी। युवा हस्ताक्षर शुभम कुमार पांडेय ने हिन्दी और अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं/बोलियों के बीच तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करते हुए हिन्दी को सर्वाधिक उदार भाषा के रूप में निरूपित किया।
डॉ संध्या सिन्हा ने भारतेन्दु युग को चित्रित करते हुए भारतेन्दु साहित्य और हिन्दी पर विस्तृत चर्चा की। उन्होनें कहा कि 1850 में भारतेन्दु का जन्म होता है और 1885 में उनकी मृत्यु हो जाती है। मात्र पैंतीस साल की अल्प आयु तक जीवन जीने वाले भारतेन्दु ने केवल और केवल हिन्दी के लिए जिया। उनकी करीब-करीब दो सौ रचनाएं है और हर विद्या में उन्होंने लिखा है। उनकी रचनाओं का जिक्र करते हुए रामविलास शर्मा ने उन्हें जन आंदोलन/भाषा आंदोलन का सबसे बड़ा जनक कहा है।
वरिष्ठ कवि शैलेन्द्र अस्थाना ने अपने संबोधन में कहा कि हर भाषा समान रूप से सम्माननीय है। भाषा को लोग अपने जरूरत के हिसाब से बनाते हैं ।जैसे- जैसे हमारा विकास होता जाएगा हमारी भाषा भी समृद्ध होती जाएगी। हिन्दी में लचीलापन है इसलिए उसकी पहुंच अधिक लोगों तक है। हिन्दी कई रूपों में बोली जाती है, जैसे कलकतिया हिन्दी, हैदराबादी हिन्दी, लखनवी हिन्दी, हरियाणवी हिन्दी, बिहारी हिन्दी। खुसरो की कविताओं को कोट करते हुए उन्होंने खड़ी बोली की उपस्थिति 14वीं शताब्दी में भी बताई।
वरिष्ठ कवि राजदेव सिन्हा ने अंग्रेजी के बराक्स हिंदी की उपेक्षा पर चिंता प्रकट की। कई उदाहरण रखते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी को सिर्फ हिन्दी दिवस पर नहीं ब्लिक हर रोज सम्मान देने की जरूरत है।
व्यंग्यकार अरविंद विद्रोही ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हिन्दी समय की जरूरत थी। देश गुलाम था और लोग बिखरे। उन्हें एक साथ लाने के लिए एक भाषा की जरूरत थी और हिन्दी से उपयुक्त कोई भाषा नहीं थी।
अपने अध्यक्षीय भाषण में ज्योत्सना अस्थाना ने हिन्दी की सरलता, सम्मोहन और स्वाभाविकता पर प्रकाश डालते हुए हिन्दी को जन चेतना से जोड़कर देखा।
कार्यक्रम का समापन कवयित्री पुष्पांजलि मिश्रा के स्वरचित हिन्दी भाषा को समर्पित कविता की प्रस्तुति के साथ हुई। संचालन वरुण प्रभात ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन तापस चट्टराज ने दिया। कार्यक्रम में डां राम कविन्द्र सिंह, सीता सिंह आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।