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विश्व कार-फ्री डे के अवसर पर जमशेदपुर में *“डबल द बस”* मुहिम को नागरिक समाज और स्थानीय संगठनों ने बुलंद आवाज दी। यह आयोजन *आदर्श सेवा संस्थान* और *महिला कल्याण समिति* के संयुक्त तत्वावधान में साकची बस स्टैंड और सुंदरनगर बस स्टॉप पर आयोजित किया गया।
इस मौके पर उपस्थित नागरिकों और विद्यार्थियों ने बैनर और पोस्टर लेकर यह संदेश दिया कि—
* शहरी और अर्धशहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक बस सेवाओं के लिए बजट आवंटन बढ़ाया जाए।
* 2030 तक 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले सभी शहरों में बसों की संख्या दोगुनी की जाए।
* आधुनिक, सुरक्षित और सभी के लिए सुलभ बस सेवाओं को प्राथमिकता दी जाए।
क्यों “डबल द बस
भारत में प्रति एक लाख आबादी पर सिर्फ़ 24 बसें उपलब्ध हैं, जबकि मानक 40–60 बस प्रति लाख होना चाहिए। देश में पब्लिक ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग्स (STUs) के पास मात्र 1.4 लाख बसें हैं, जिनमें से हर चार में से एक पुरानी और असुरक्षित है। केवल शहरी क्षेत्रों में ही 1.3 लाख बसों की भारी कमी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि *2031 तक भारत को 5.85 लाख परिचालित बसों की जरूरत होगी*, जबकि मौजूदा खरीद व्यवस्था से केवल 3.38 लाख बसें ही जुट पाना संभव है। यानी 2.46 लाख बसों की कमी तुरंत पूरी करनी होगी।
बस क्यों ज़रूरी
मोबिलिटी की रीढ़: कई शहरों में बस सवारियों की संख्या मेट्रो की तुलना में दर्जनों गुना अधिक है।
जलवायु और समानता: बसें ऊर्जा व स्थान की दृष्टि से सबसे किफ़ायती सार्वजनिक परिवहन साधन हैं। ई-बसों के बढ़ते प्रयोग से प्रदूषण और जाम दोनों कम होंगे।
तेज़ और किफ़ायती विस्तार: मेट्रो/रेल की तुलना में बस नेटवर्क को कहीं ज़्यादा जल्दी और कम लागत पर बढ़ाया जा सकता है।
इस अवसर पर *आदर्श सेवा संस्थान* और *महिला कल्याण समिति* के प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से कहा—
“जमशेदपुर जैसे औद्योगिक और व्यावसायिक शहर में सुरक्षित, सस्ती और सुलभ सार्वजनिक बस सेवा समय की मांग है। यदि बसों की संख्या दोगुनी की जाती है तो यह छात्रों, कामकाजी वर्ग, महिलाओं और आम नागरिकों के लिए सबसे बड़ा सहारा साबित होगा।”
इन संगठनों ने स्थानीय नागरिकों और युवाओं के साथ मिलकर इस अभियान में भाग लिया और राज्य व केंद्र सरकार से इस दिशा में ठोस कदम उठाने की अपील की।