- झारखंड में हाथियों की सुरक्षा, संरक्षण और हाथी-मानव टकराव को कम करने के लिए तीन जोन बना कर किया जाएगा काम
Campus Boom.
हाथियों की सुरक्षा और संरक्षण को लेकर वन विभाग ने अब नई तकनीक की ओर अपना रुख किया है. वन विभाग हाथियों के मूवमेंट से लेकर उनकी और मानव जान माल की क्षति को कम करने को लेकर गहन चिंतन में हैं और इसको लेकर राष्ट्रीय स्तर की योजना बना कर काम किया जा रहा है. लगातार हो रहे हाथियों की मौत को लेकर गंभीरता दिखाई गई है. वन विभाग उनकी सुरक्षा को लेकर आर्टिफिशियल इंटिलिजेंस जैसी तकनीकों को अपना रहा है, साथ ही एक हमार हाथी नाम से एप लांच किया गया है. यह एक ऐसा एप है जिसके माध्यम से हाथियों से संबंधित न केवल जानकारी मिलेगी, बल्कि हाथियों के होने की सूचना अलर्ट मैसेज भी तत्काल मिलेगा. यही नहीं हाथी एप यूजर के लोकेशन से कितनी दूरी पर है यह भी जानकारी मिल पाएगी. इस एप के माध्यम से हाथियों पर आसानी से नजर रखी जा सकेगी और होने वाली घटना, दुर्घटना को रोक पाने में सफलता मिल पाएगी.
हाथियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए विश्व हाथी दिवस (12 अगस्त) के मौके पर दलमा वन प्राणी आश्रयणी, जमशेदपुर की ओर से राज्य स्तरीय एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है. इस कार्यशाला में जहां एक ओर झारखंड वन विभाग के तमाम बड़े अधिकारी मौजूद रहे, वहीं देश के विभाग राज्यों से हाथियों पर काम करने वाले, रिसर्च करने वाले स्टूडेंट्स, शोधकर्ता और एनजीओ के प्रतिनिधि भी शामिल हुए. हाथियों पर आधारित शोध और किए जा रहे कार्य को कई एक्सपर्ट ने प्रस्तुत किया और बारीकी से हाथियों की सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन की जानकारी दी. साथ ही यह भी बताया गया कि किस तरह से मानव और हाथियों के टकराव को रोका अथवा कम किया जा सकता है. कार्यक्रम में पीसीसीएफ संजीव कुमार, अशोक कुमार, सीसीएफ, आरसीसीएफ, डीएफओ, रेंजर और विभिन्न शैक्षणिक संस्थान के प्रतिनिधि मंडल भी शामिल थे.
झारखंड में 2019-24 तक 528 हाथियों की हुई है मौत, 2869 इंसानों को हाथियों ने मारा
हाल के दिनों में रेल पटरियों पर कटकर बड़ी संख्या में हाथियों की मौत ने वन विभाग और रेलवे, दोनों के लिए चिंता बढ़ा दी है. कार्यक्रम के दौरान जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए वह काफी चौंकाने और हैरान करने वाले थे. वर्ष 2019 से 2024 महज पांच वर्षों में देश भर में 528 हाथियों की मौत हुई है, वहीं हाथी-मानव टकराव में 2869 लोगों ने भी अपनी जान गंवाई है.
रेल दुर्घटना में मारे जा रहे हाथी, वन विभाग और रेलवे मिलकर कर रही है काम
वन विभाग और दक्षिण पूर्व रेलवे जोन संयुक्त रूप से इस योजना को अमल में लाने के लिए काम कर रहे हैं। इस प्रणाली के तहत रेलवे ट्रैक के किनारे विशेष सेंसर, हाई रेजिल्यूशन कैमरे और धर्मत इमेजिंग डिवाइस लगाए जाएंगे। इन उपकरणों से हाथियों की गतिविधियों और उनकी लोकेशन का वास्तविक समय (रियल टाइम) डेटा एक केंद्रीकृत कंट्रोल रूम को मिलेगा। एआई सॉफ्टवेयर इस डेटा का विश्लेषण कर ट्रेनों को समय रहते अलर्ट जारी करेगा, ताकि लोको पायलट धीमी गति से ट्रेन चला सके और दुर्घटनाएं टल सके. एआई प्रणाली के जरिए रेलवे और वन विभाग के बीच त्वरित समन्वय संभव होगा. उन्होंने कहा कि “हमारा उद्देश्य हाथियों के सुरक्षित आवागमन को सुनिश्चित करना और अनावश्यक जान माल की हानि को रोकना है. एआई तकनीक इसमें हमारी बड़ी मदद करेगी। इस तकनीक से न केवल हाथियों की जान बचेगी बल्कि रेलवे को भी भारी वित्तीय नुकसान और ट्रेन परिचालन में आने वाली बाधाओं से राहत मिलेगी। इसके अलावा, यह पहल वन्यजीव संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है.
रेल विभाग वित्तीय क्षति से बचेगा
इस तकनीक से न केवल हाथियों की जान बचेगी बल्कि रेलवे को भी भारी वित्तीय नुकसान और ट्रेन परिचालन में आने वाली बाधाओं से राहत मिलेगी. इसके अलावा, यह पहल वन्यजीव संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है.
रेलवे और वन विभाग आपसी समन्वय से करेंगे काम
एआई प्रणाली के जरिए रेलवे और वन विभाग के बीच त्वरित समन्वय संभव होगा. इसका उद्देश्य हाथियों के सुरक्षित आवागमन को सुनिश्चित करना और अनावश्यक जान-माल की हानि को रोकना है. एआई तकनीक इसमें विभाग को बड़ी मदद होगी.
झारखंड को तीन जोन में बांट कर तैयार की जा रही है कार्ययोजना : एसआर नटेश
कार्यक्रम में सीसीएफ एसआर नटेश ने कहा कि झारखंड को हाथियों के संरक्षण के मामले में 3 जोन में बांटा गया है. एक दलमा, सारंडा और पोड़ाहाट का वन क्षेत्र जो कि कोल्हान का वन क्षेत्र है. दूसरा जोन पलामू रिजर्व क्षेत्र और तीसरा गोड्डा, साहेबगंज और पाकुड़ वन क्षेत्र को मिलाकर बनाया गया है. इन जोन में अलग अलग तरीके से हाथियों का संरक्षण करने की कार्ययोजना तैयार की जा रही है. इन तीनों क्षेत्रों में हाथियों का संरक्षण जरूरी है. हाथी एक से दूसरे वन क्षेत्र में घूमते है. इनका सालाना मूवमेंट कम से कम 500 से 1000 वर्ग किलोमीटर में होता है, झारखंड का रिजर्व एरिया 300 वर्ग किलोमीटर तक ही सीमित होते है, इससे इनका संरक्षण बड़ी चुनौती है।
हाथी जिन रास्तों से होकर एक से दूसरे वन क्षेत्र में जाते है, जिसे एलीफेंट कोरिडोर कहा जाता है, जहां मानव बसावट है, वहां हाथी-मानव के बीच संघर्ष की स्थिति बनी रहती है. तकनीक और जागरुकता के बल पर हाथियों को बचाना जरूरी है.