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हर सावन में हमारी कोशिश होती है कि हम आपको एक ऐसे शिवालय का दर्शन कराये जिसकी कहानी अब तक कहीं छुपी हुई है या बहुत कम लोग वहां तक पहुंच पाते हैं। हमारा प्रयास होता है कि हम शिवलिंग के दर्शन के साथ-साथ उससे जुड़ी पौराणिक, किवदंती और रोचक कहानियों को सामने लेकर आये। आज आपको हम एक ऐसे ही शिवलिंग का दर्शन कराएंगे, जिसे स्थापित किया गया हैं लेकिन उसकी छत खुद पर खुद बढ़ रही है जी हां उसकी चट्टान नुमा छत जीवित कही जाती है जो साल दर साल खुद ही बढ़ रही है। यह मंदिर जमशेदपुर के टेल्को के लेबर ब्यूरो क्षेत्र में स्थित है जिसे श्री श्री 108 सत्य आश्रम लाल पहाड़ी, मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस शिवालय की कहानी धालभूमगढ़ के राजा जगन्नाथ धल, उनके राजवंश और टाटा मोटर्स कंपनी की स्थापना से जुड़ी हुई है.
आपको बता दे की वर्तमान का पूर्वी सिंहभूम जिला एक समय में धालभूमगढ़ स्टेट हुआ करता था, और यह क्षेत्र इसी राजवंश के अधीन था। करीब 300 साल पहले 17वीं शताब्दी में ब्रिटिश काल के दौरान जगन्नाथ धल धालभूमगढ़ के राजा हुआ करते थे। हालांकि इसके पूर्व से धालभूमगढ़ स्टेट का प्रमाण मिलता है। ब्रिटिश काल के दौरान मालगुजारी वसूलने की जिम्मेदारी के कारण धालभूमगढ़ स्टेट की कागजी पहचान सामने आई।

दरअसल बताया जाता है कि धालभूमगढ़ स्टेट के राजा जगन्नाथ धल ने ही इस क्षेत्र के जंगलों में शिवलिंग की स्थापना की जहां आज टाटा मोटर्स कंपनी है। मालूम हो कि टाटा मोटर्स कंपनी की स्थापना सन 1950 में की गई थी इस दौरान इस मंदिर का अस्तित्व भी सामने आया इसलिए इस मंदिर की स्थापना काल का वर्ष 1950 लिखा गया है।
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एक समय में यह क्षेत्र पूरी तरह से घनघोर जंगल हुआ करता था जहां काफी संख्या में जंगली जानवर भी थे, राजा शिकार के उद्देश्य से आया करते थे और उसी दौरान वह इस जंगल में एक शिवलिंग की स्थापना किए थे और ठहरने के दौरान भगवान शिव की आराधना भी किया करते थे। उस वक़्त इस जगह पर शिवलिंग और इस मंदिर की पहचान एक आश्रम के तौर थी। लेकिन बाद में धीरे-धीरे राज पाठ समाप्त होता गया और मंदिर की पहचान मिट सी गई लेकिन आश्रम होने के कारण संतों का आना लगातार जारी था। कुछ ऐसे ही संत हुए जो यहां अपनी एक लंबी यात्रा के बाद विश्राम किए और अब यह आश्रम उनके नाम से पहचाना जाता है।
यह मंदिर संत लाला बाबा के नाम से जाना जाता है. लोगों की जानकारी के अनुसार यहां पहुंचने वाले पहले संत लाल बाबा ही थे. इसलिए इस आश्रम और मंदिर को लाल पहाड़ी नाम दे दिया गया. उसके संत के तौर पर एक महिला संत का नाम आता है जिन्हें सभी बूढ़ी माता के नाम से जानते हैं. यह बूढ़ी माता लाल बाबा की सेवक थी. उनके निधन के बाद बूढ़ी माता ने ही मंदिर और शिवलिंग की सेवा की, इसलिए उन्हें भी इसके संत के तौर पर माना जाता है. तीसरे संत के तौर पर सूर्य नारायण बाबा और चौथे संत के तौर पर काला बाबा यहां पहुंचे थे. इन चारों का परलोक गमन यहीं से हुआ, इसलिए इनके भक्तों ने चारों संतों को उनके परलोक गमन के बाद इसी परिसर में उन्हें समाधि दी, जो आज भी इस आश्रम परिसर में है.
यह मंदिर कॉलोनी के बीचों बीच होने के बावजूद लोगों बहुत ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हुआ अथवा यहां कम ही श्रद्धालु आते हैं. इसके अलग अलग कारण है. लेकिन वर्तमान में मंदिर समिति से करीब 50 लोग जुड़े हैं, जो मंदिर में नि:स्वार्थ भाव से अपनी सेवा दे रहे हैं.
हर साल 25-26 जनवरी को भव्य अष्टजाम का होता है आयोजन
इस मंदिर में ऐसे तो सावन में सीमित संख्या में ही भक्त पहुंचते हैं, लेकिन समिति की ओर से प्रत्येक वर्ष 25-26 जनवरी को भव्य पूर से अष्टजाम का आयोजन किया जाता है. दो दिवसीय इस उत्सव में भक्तों की भीड़ जुटती है और प्रसाद का भी वितरण किया जाता है.
मंदिर समिति के लोग कहते हैं कि काफी प्राचीन और मान्यता प्राप्त होने के बावजूद इस मंदिर को पहचान नहीं मिल रही है. लोग यहां तक नहीं पहुंचते हैं. मंदिर से जुड़े लोग कहते हैं कि वे चाहते हैं कि मंदिर का विकास हो.
बन सकता है यह आकर्षण का केंद्र
श्रीश्री 108 सत्य आश्रम लाल पहाड़ी मंदिर पर अगर सरकार, प्रशासन और इसमें रुचि रखने वाले लोगों की नजर पड़े, तो यह बहुत ही आकर्षक और भक्ति भाव का क्षेत्र बन सकता है. इसका परिसर और परिवेश काफी सुंदर और शांत है.