- जमशेदपुर को-आपरेटिव कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग एवं आईक्यूएसी द्वारा ” जैव विविधता : चुनौतियां , निवारण एवं पुनर्स्थापन रणनीतियां ‘ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का हुआ आयोजन
- झारखंड सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा प्रायोजित था कार्यशाला
जमशेदपुर को-आपरेटिव कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग एवं आईक्यूएसी द्वारा ” जैव विविधता : चुनौतियां , निवारण एवं पुनर्स्थापन रणनीतियां ‘ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला झारखंड सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा प्रायोजित था. कार्यशाला में मुख्य अतिथि के तौर पर संजीव कुमार आईएफएस, पीसीसीएफ-सह-सदस्य सचिव, झारखंड जैव विविधता बोर्ड, झारखंड सरकार मौजूद थे. उन्होंने क्योटो मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के बारे में चर्चा की, जिसमें उन्होंने मिट्टी के सूक्ष्मजीवों के संरक्षण पर विशेष जोर दिया। उन्होंने झारखंड में 23 लक्ष्यों का उल्लेख किया, जिनमें प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, इको-पुनर्स्थापन, प्रदूषकों को समाप्त करना, उर्वर भूमि बनाना और प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना शामिल है। जैव विविधता की किसी भी हानि से ग्रामीणों और उनकी आजीविका पर प्रभाव पड़ता है।
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मुख्य अतिथि ने प्रधानमंत्री मोदी के “लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट” (LiFE) अभियान का भी उल्लेख किया, जिसमें ग्रीनहाउस गैसों को कम करने और कार्बन फुटप्रिंट को शून्य करने पर जोर दिया गया है। उन्होंने छात्रों और शोध विद्वानों से कृषि विविधता के क्षेत्र में रुचि लेने का आग्रह किया। झारखंड में लाह (80 प्रतिशत) और तसर (60 प्रतिशत) उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान को उदाहरण के रूप में देते हुए, उन्होंने जैव विविधता की रक्षा के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया। इसके बाद डॉ शालिनी शर्मा ( आयोजक सचिव) ने कार्यशाला की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की।
आज जलवायु परिवर्तन की समस्या से ग्रस्त हैं क्योंकि प्राकृतिक संपदा का हार्मोनी के साथ उपयोग नहीं हो रहा है। इनका सतत् उपयोग की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीठीयों को भी ये संसाधन उपलब्ध रहें। इसके प्रकृति पर आधारित लाइफ स्टाईल बनाने की आवश्यकता है। जैव विविधता के संरक्षण तथा सतत उपयोग के लिए एक्शन प्लान बनाया गया है जिसमे 23 टारगेट है| इनके अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता है उनके द्वारा जल संचयन, आर्गेनिक फ़ार्मिंग, रिसर्च – ट्रैनिंग की आवश्यकता भू-क्षरण रोकने, पॉलिनेटर की पहचान कर उनका संरक्षण, वन पर आधारित सतत् पोष्य जीविकोपार्जन जैसे-लाह की खेती, तसर की खेती, बांस पर आधारित कुटीर उद्योग इत्यादि पर बल दिया गया। जिससे जैवविविधता का संरक्षण हो और सभी लोग मिलकर COP की एक्शन टारगेट पर काम करे जिससे आज आने वाले सारी परेशानियों का समाधान किया जा सकता है| जिसके लिए पर्षद द्वारा सहयोग भी किया जाएगा और साथ ही विधयार्थियों की जैवविविधता के प्रति रुचि लाने हेतु छोटे- छोटे प्रस्ताव पर भी पर्षद का सहयोग मिलेगा आश्वासन दिए।
संजीव कुमार, पीसीसीएफ-सह-सदस्य सचिव, झारखंड जैव विविधता बोर्ड, झारखंड सरकार
तकनीकी सत्र का आरंभ डॉ नीता सिंहा ( आइक्यूएसी समन्वयक) द्वारा वक्ताओं के परिचय से हुआ। डॉ अमर सिंह, प्रिंसिपल और झारखंड सरकार के राज्य वन्यजीव बोर्ड के सदस्य ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि पृथ्वी लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व विकसित हुई थी और जीवन यानी जैविक विकास लगभग 3.5 अरब वर्ष पूर्व हुआ था। उन्होंने मानव गतिविधियों के कारण जैव विविधता पर पड़ने वाले विनाशकारी प्रभावों पर चिंता व्यक्त की, जैसे कि मानव-वन्यजीव संघर्ष, जैव विविधता की हानि और कई प्रजातियों का विलुप्त होना।
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उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें किसी भी स्तर पर किसी भी जीव को नहीं मारना चाहिए, क्योंकि इससे खाद्य श्रृंखला पर प्रभाव पड़ता है। जैव विविधता की हानि के कारण कई प्राकृतिक घटनाएं जैसे कि ग्लोबल वार्मिंग, सूखा, बाढ़, फसल चक्र प्रभावित होना और ग्लेशियरों का पिघलना आदि प्रभावित होती हैं।
डॉ सिंह ने कीस्टोन प्रजातियों के महत्व पर प्रकाश डाला, जैसे कि टेरोपिड चमगादड़/फ्लाइंग फॉक्स जो परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और ग्रे वुल्फ भी कीस्टोन प्रजाति हैं। उन्होंने बताया कि यौन प्रजनन विविधता पैदा करता है। उन्होंने आयरलैंड में 1840 के महान अकाल और ब्लैक रस्ट फंगी पी इनफेस्टन्स के बारे में विस्तार से चर्चा की।
प्राचार्य डॉ अमर सिंह ने जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंधों पर जोर दिया। उन्होंने नीम पौधे को कार्बन सिंक के रूप में उल्लेख किया और बताया कि पौधे कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं। उन्होंने सचिव पक्षी की भूमिका पर भी प्रकाश डाला जो पारिस्थितिकी तंत्र को नियंत्रित करने में मदद करता है। केसिया पक्षी पेरू में विलो के पेड़ों के रोपण में मदद करते हैं जिनसे क्रिकेट के बल्ले और स्टम्प बनाए जाते हैं। डॉ सिंह ने झारखंड में एकमात्र रामसर स्थल, उधवा झील पक्षी अभयारण्य का उल्लेख किया और अंत में पृथ्वी को बचाने का आह्वान किया। कार्यशाला में जमशेदपुर वन प्रमंडल की आरसीसीएफ स्मिता पंकज भी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुईं।
वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी, झारखंड जैव विविधता पर्षद के हरिशंकर लाल ने आमंत्रित व्याख्यान प्रस्तुत किया। हरी शंकर लाल ने जैवविविधता शासन के कानूनी और प्रशासनिक पहलुओं की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने यह समझाया कि राज्य जैवविविधता बोर्ड की भूमिका किस प्रकार जैवविविधता अधिनियम को लागू करने में महत्वपूर्ण है।
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि, अतिथियों एवं प्राचार्य द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुई। प्राचार्य डॉ अमर सिंह ने स्वागत भाषण देते हुए कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथि व प्राचार्य द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए।
कार्यक्रम का संचालन डॉ अंतरा कुमारी एवं डॉ रुचिका तिवारी ने किया। डॉ प्रभात कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यशाला में वर्कर्स कॉलेज के प्राचार्य डॉ एसपी महालिक, एबीएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ विजय कुमार, ग्रेजुएट कॉलेज की प्राचार्य डॉ वीणा सिंह प्रियदर्शी, एलबीएसएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ अशोक कुमार झा के साथ डॉ हशन इमाम मल्लिक, डॉ एचपी शुक्ला, अजय कुमार सिंह, हिमांशु सेठ एवं विभिन्न महाविद्यालयों के शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।